भारी भारी दिल
जगी आँखें
हर-एक में पागलपन है!
ये नन्हे सपने
बोझ से लदे दिमागों में
पनपने की हिम्मत
कर ही लेते हैं!
धूप का टुकड़ा
अँधेरे सोये कमरों में
उम्मीद जगाकर लौट जाता है
सीलन की गंध याद दिलाती है
यहाँ तुम्हारा कोई नहीं
सिर्फ अकेलापन है
सपने, धूप, गंध
हर-एक में पागलपन है
ये पागलपन ही तो है
जो हर-एक को हर-एक से जोड़ता है
हम थके नहीं है
हम रुके नहीं है
हम बेजान नहीं हुए अभी तक
क्योंकि हर-एक में पागलपन है !
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