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बिरसा मुंडा (Birsa Munda) भारतीय आदिवासी योद्धा (9 जून बिरसा मुंडा शहीद दिवस) जीवन परिचय

बिरसा मुंडा (Birsa Munda) भारतीय आदिवासी योद्धा और समाजसेवी थे। उनका जन्म 15 नवंबर, 1875 को झारखंड (वर्तमान झारखंड राज्य) के चाक्रधरपुर गाँव में हुआ। वह मुंडा जाति से संबंधित थे और मुंडा जाति के लोगों के हित में संघर्ष करने के लिए प्रसिद्ध हुए।

बिरसा मुंडा ने अपने बचपन से ही अंग्रेज़ साम्राज्यवाद और उसके अत्याचार के प्रति आदिवासी लोगों की जागरूकता विकसित करने में रुचि दिखाई। उन्होंने अंग्रेज़ सरकार के विरुद्ध आंदोलन चलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे खेड़ी आंदोलन, मुंडा संघर्ष और उपनिवेशवाद के खिलाफ लड़ाई आदि के माध्यम से आदिवासी समाज को एकजुट करने का प्रयास करते रहे।

बिरसा मुंडा ने अंग्रेज़ सरकार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए, जिसमें उन्होंने आदिवासी लोगों को राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक स्वराज के लिए संगठित किया। उन्होंने भारतीय आदिवासी एवं संख्यात समाज के बीच विचार-विमर्श को बढ़ावा दिया और लोगों को उच्च शिक्षा, धार्मिक संस्कृति, स्वास्थ्य और प्राकृतिक संसाधनों के सही उपयोग की जागरूकता दिलाई।

1895 में, बिरसा मुंडा ने अपने आंदोलन के नेतृत्व में मुंडा समाज को झारखंड के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी जोड़ा। यह आंदोलन उनके विचारों को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण कारक था। हालांकि, 1900 में बिरसा मुंडा को गिरफ्तार करके अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें कालापानी (दीवानगिरि जेल) भेज दिया। उनकी कठोर दण्डात्मक सजा के बाद, उन्हें 1905 में जेल से रिहा कर दिया गया, लेकिन उनकी सेहत उसके जेल में खराब हो गई थी। बिरसा मुंडा ने दुर्गम वन्य इलाकों में विचारों की फैलावट के बाद 9 जून, 1900 को अपने कर्मभूमि जैसे ही सिंद्री गांव में अपने छह बेटे और उनकी सहायता से अपना अद्याय फ़िर से शुरू किया।

बिरसा मुंडा को आदिवासी आंदोलन के महानायक के रूप में मान्यता प्राप्त है। उनका प्रभाव आज भी झारखंड और आदिवासी समुदायों के बीच महसूस किया जाता है। उनके बलिदान और संघर्ष की याद आज भी उनके भक्तों और उनके आदिवासी जनजाति के लोगों द्वारा याद की जाती है।

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