साक्षात्कार के लिए अपना व्यक्तित्व कैसे निखारें।How to Develop your personality for UPSC
नजरिया व्यक्तित्व का आईना होता है
मुर्दादिल व्यक्तियों की पहचान यह है कि उन्हें हमेशा किसी न किसी बात से शिकायत रहती है । अगर कोई उन्हें प्यार से खाना बनाकर खिलाए तो से उस भोजन में भी कमियों गिनाने लगते हैं । दरअसल उन्हें खुद को छोड़कर कायनात की हर चीन से शिकायत रहती है । किसी की बड़ी से बड़ी पर भी उनके मुँह से तारीफ के दो शब्द नहीं निकलते । आमफहम भाषा में ऐसे लोगों को ' मनहूस ' कहने का चलन है और अमूमन सभी लोग इनसे दूरी बनाकर रखना चाहते हैं ।
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दूसरी तरफ , ज़िंदादिल और खुशमिज़ाज लोगों की खासियत यह होती है कि वे बुरी से बुरी परिस्थिति में भी प्रसन्न रहने की वजहें तलाश लेते हैं । उन्हें कोई अधपका खाना भी खिलाए तो उनके माथे पर शिकन नहीं आती , उलटा वे खुशी और कृतज्ञता से भरकर कहते हैं कि वह यह स्वाद है । ऐसे लोग अपनी कमियाँ खुलकर स्वीकार करते हैं और दूसरों को तारीफ में कंजूसी नहीं करते । इनके जीवन में भी तमाम कष्ट और अ होते हैं पर ये उनके सामने अपनी सहजता और उदारता को कमजोर नहीं पड़ने देते । अगर आप चाहते हैं कि सिविल सेवा में शामिल होने के बाद आपको ख्याति भी समाज के नायकों जैसी बने तो आपको बेहद सकारात्मक व जिंदादिल व्यक्तित्व बनाना होगा और चूँकि व्यक्तित्व निर्माण एक धीमी और लंबी प्रक्रिया है अतः इसके लिये अभी से गंभीर प्रयास करने होंगे । अपनी कुछ पुरानी आदतों को छोड़ना होगा और कुछ नई आदतों को अपनाना होगा ।
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सबसे पहले , अगर आपको दूसरों की बेवजह आलोचना करने की आदत है तो उसे छोड़ना होगा । बेवजह या निरर्थक आलोचना का मतलब है बिना कोई समाधान सुझाए आलोचना के लिये आलोचना करना । इस संबंध में आपने एक प्रसिद्ध लोक - कथा ज़रूर सुनी होगी जो संभवतः ऐसे हो को आईना दिखाने के लिये गढ़ी गई है । कथा यह है कि एक बार एक चित्रकार ने एक चित्र बनाकर चौराहे पर रख दिया और साथ में एक टिप्पणी पुस्तिका पर लिखा कि जिन्हें लगता है कि इस चित्र में कोई कमी है , वे कृपया हस्ताक्षर कर दें । कुछ ही देर में पूरी टिप्पणी पुस्तिका भर गई । जो भी उस चित्र को देखता हस्ताक्षर कर देता । बेचारा चित्रकार रुआँसा हो गया क्योंकि वह तो अपने चित्र को बेजोड़ समझ रहा था । खैर , अगले दिन उसने वह चित्र फिर से उसी स्थान पर रखा और इस बार साथ में रंग और ब्रश भी रख दिये । इस बार उसने लिखा कि कृपया चित्र को उन गलतियों को सुधार दें जिन्हें कल आपने पहचाना था । हैरत की बात थी कि पूरा दिन गुजर गया पर एक भी व्यक्ति ने ब्रश उठाने की हिम्मत नहीं दिखाई । जैसी आलोचना इस कथा में चित्र देखने वाले कर रहे थे , उसे ही निरर्थक या बेवजह आलोचना कहते हैं । ऐसे लोगों में अक्सर इतना नैतिक व रचनात्मक साहस नहीं होता कि नए विकल्प खड़े कर सकें या समाधान सुझा सकें । ऐसे ही लोगों के बारे में किसी शायर ने बहुत खूब लिखा है " जिसकी नज़रों में था हर इंसी का चेहरा दागदार आईने के सामने आकर वो शरमाया बहुत । हमें दूसरा प्रयास यह करना होगा कि जब भी किसी का मूल्यांकन करें तो स्वस्थ नज़रिये से करें , उसमें सकारात्मकता बनाए रखें । स्वस्थ नज़रिये वाले लोगों की खास बात होती है कि वे दूसरों की कमियों की अपेक्षा उनकी खूबियों पर ज्यादा ध्यान देते हैं । वे किसी की आलोचना करने से पहले खुद को उस व्यक्ति के स्थान पर रखकर अनुमान करते हैं कि अगर वे स्वयं उन्हीं परिस्थितियों में होते तो क्या वे खुद वैसा व्यवहार कर पाते जिसको उम्मीद वे उस व्यक्ति से कर रहे हैं ? इस सावधानी को ही अंग्रेज़ी के एक मुहावरे में “ Putting oneself in someone's shoes " कहा जाता है । इसके अलावा , वे सिर्फ कमियों नहीं बताते बल्कि समाधान भी सुझाते हैं । उनकी भाषा प्रोत्साहन को होती है , हतोत्साहित करने की नहीं । एक बात और । किसी का मूल्यांकन करते समय हमें यह भी ध्यान रखना चाहिये कि जिन कसौटियों पर और जितनी निर्ममता से हम दूसरों को आलोचना करते हैं , वही कसौटियाँ हम खुद पर भी लागू करें । इसी विशेषता को वस्तुनिष्ठता या ' ऑब्जेक्टिविटी ' कहते हैं जो वैज्ञानिक स्वभाव के व्यक्तियों में दिखाई पड़ती है । इसके अलावा , यह भी मानकर चलना चाहिये कि छोटी मोटी कमियों और गलतियों से कोई भी व्यक्ति मुक्त नहीं हो सकता । प्रसिद्ध ग्रीक विचारक लॉजाइनस ने बड़े पते की बात कही है . “ महानता चाहे जितनी भी बड़ी हो , वह निर्दोष नहीं होती ; उसमें छोटे - मोटे रह ही जाते हैं । " अतः दूसरों की छोटी - छोटी कमियों पर असहिष्णु नहीं होना चाहिये और याद रखना चाहिये कि ऐसी कमियाँ हममें भी कम नहीं हैं ऐसे में संत कबीरदास की ये पंक्तियाँ हमें सही सलाह देती हैं- " बुरा जो देखन मैं चला , बुरा न मिलिया कोय । जो दिल खोजा आपना , मुझसे बुरा कोय । "
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कुल मिलाकर , व्यक्ति को जीवन में कितनी सफलता और प्रतिष्ठा मिलती है यह मोटे तौर पर उसके नज़रिये से तय होता है । अगर हम चाहते = कि हमें समाज तथा प्रशासन में शानदार व्यक्ति के तौर पर जाना जाए तो हमें अपना नज़रिया स्वस्थ बनाना होगा । ऐसा नज़रिया बनाना मुश्किल तो है असंभव नहीं । इसलिये , आज से ही खुद को अपनी गलतियों पर टोकना शुरू कर दीजिये , इससे पहले कि कोई और टोके या टोके बिना ही हमा नकारात्मकता के कारण हमसे दूरी बनाने लगे ।
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