जब कोई तुम्हारे प्रेमी या प्रेमिका से स्नेह करता है। तुम तिलमिला उठते हो, जन्म लेता है क्रोध, ईर्ष्या, उपेक्षा का भाव, सिद्ध करने लगते हो अपना आधिपत्य जैसे प्रेम न हुआ कोई वस्तु हो गयी, जानते हो क्यों क्योंकि तुम भयभीत हो, तुम जानते हो खोखली है अन्तस् से तुम्हारे संबंध की सहजता।
एक माँ के बालक को जब कोई स्नेह करता है माँ और अधिक प्रसन्नता से, वात्सल्य से खिल उठती है। उसके भीतर नहीं जन्म लेती ईर्ष्या, क्रोध, कुंठित भाव, वह नहीं सिद्ध करती बारंबार अपने माँ होने का अधिकार, जानते हो क्यों क्योंकि उसके भीतर अपने सम्बन्ध को लेकर कोई भय नहीं होता।

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