ना जाने कितनी चिट्ठियां लिखी थी मैंने
तुम्हारे प्रेम में,
रखी थी कुछ वक्त तक सहेज कर
मेरे उस पुराने बक्शे में,
भिगो आया था उन्हें बरसते सावन में,
एक रोज इस डर से कि कोई पढ़ ना ले
देखता रहा था देर तक हर एक हर्फ़ को
घुलते हुए बारिश में
जो लिखे थे,
सिर्फ तुम्हारे लिए,
था अधिकार उन पर सिर्फ तुम्हारा ,
बचा होगा स्पंदन उन अलफाजों का,
इस ब्रह्माण्ड में कहीं,
करोगे कोशिश तो
कर लोगे महसूस शायद...
बारिश में घुले उन अलफाजों के स्पन्दन को,
स्पन्दित हुए थे जो,
सिर्फ हृदय में मेरे।
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