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सफर मरुत्वान का....

हम एक सफर में है इस ग्रह पर... अनजाने सफर में एक मुसाफिर की तरह बस चले जा रहे हैं इन अनजानी, अनदेखी राहों पर... यह जीवन महज एक पड़ाव है, मंजिल नहीं... यहां कुछ भी हमारा नहीं है...आज जो हमारा है, कल किसी और का होगा, बीते हुए कल में किसी और का रहा है....सदियों से सूखता, ठिठुरता, हरा होता यह मरुत्वान कुछ कहना चाह रहा हो जैसे...तपिश के दिन सदैव नहीं रहते...बरखा के स्नेह से द्रवित हो लहलहा उठेगा जीवन का यह मरुत्वान एक दिन....।
ना जाने कितने ही मुसाफिर गुजरे हैं इस पड़ाव से, जिनके पद चिन्ह धूलभरी आंधियो में  कहीं खो से गए...जिनके वजूद की अनगिनत कहानियां खुद के भीतर रेत की परत दर परत समेटे हुए है यह मरुत्वान...उनके समय की बातें अति लघु आवृति में तब्दील हो हवा में तैर रही है  बहुत ही हल्के  स्पंदन के साथ, जिसे सुन पाना मानव के वश की बात नहीं है... खेर जो भी हो... एक मुसाफिर की हैसियत से आगे बढ़ते रहना है... बिना किसी आधिपत्य के भाव से... कल और आएंगे कुछ नये मुसाफिर यहाँ अपना पड़ाव लेने.... हम कुछ थे, या नहीं थे... शेष सिर्फ मौन होगा... मौन मरुत्वान.... हम बस इतना कर सकते हैं... आने वाले उन अनजाने मुसाफिरों के लिए इस मरुत्वान में कुछ स्नेह के पेड़ उगा लेते हैं.... सुलगते मरुत्वान में कोई मुसाफिर  इन पेड़ों की छांव में सुस्ता कर प्रेम का फलाहार करेगा.... उसका सफर कुछ आसान हो जाएगा... राह में पड़े कंटकों को हटा लेते हैं....बस निष्काम भाव से... चलते हैं.... अगले पड़ाव पर... एक नए अनुभव के लिए...🙏

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