मंगल मेरा तुम थे
सूत्र किसी और से जोड़ना पड़ा था
छठवें फेरे तक थामे रखा था
सातवें में उम्मीदों को छोड़ना पड़ा था
आंखों में भर के पानी,
हवनकुंड में यादों को झोंकना पड़ा था
चलती तो तेरे कदमों पर थी
सप्तपदी को तो बस धरना पड़ा था
मैं गयी नही थी
मुझे जाना पड़ा था
बाबा का कर्ज़ था
उसे उतारना पड़ा था
अम्मा की आंसू थें
वादों को तोड़ना पड़ा था
इश्क़ का रंग नेमत थी
हल्दी तो चुनना पड़ा था
भरोसे तेरा मेरे सिर पर था
सोहाग चुनर तो ओढ़ना पड़ा था
सुहागन तो मैं तेरी ही थी
सौभाग्य किसी और का भरना पड़ा था
क्षमा याचना नही करती पापों का
सब जान समझकर करना पड़ा था
जीती तो साथ तेरे थी
इल्ज़ाम आख़िरी मौत को देना पड़ा था।।
2 टिप्पणियाँ
Waaaaaaaaaw🙏🙏🙏🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंWaaaaw soo nice..... Koi kisi sachaai ko kese itni khubsurti se in sabdo ki malaa se piroo sakta hai....
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