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हम वो दीये हैं , जो जला भी नहीं , बुझा भी नहीं है ....

गर वफ़ा परस्त नहीं हैं , तो बेवफ़ा भी नहीं हैं हम 
पर जैसे भी हैं , दिल बुरे भी नहीं हैं हम ।
उसी के सर पे क़यादत का ताज रक्खा है जिस को सियासत का तजुर्बा भी नहीं है।
ये कार , दौलतो - बंगला , तुम्हें मुबारक हो हम ऐसी फ़ालतू चीज़ों को सोचते भी नहीं हैं।
न जाने क्यों हर शख़्स इतना  चाहता है हमें
 हम एक आम आदमी हैं कोई देवता नहीं है।
 बच गये हैं जो वक्त की मार से , तो दुश्मनों को हैरत है , ये सख़्त जान अभी जिन्दा है , कैसे है ,
किसी को बरसों अकेले में सोचते रहना ... मरज़ ये ऐसा है जिसकी कोई दवा भी नहीं है ,, 
फ़रोगे - इल्म की दुनिया में मुत्मइन हैं हम ... कोई कहे हमें शायर , हम चाहते भी नहीं है।
 हमारा वुजूद पुर इसरार ही रहा ' ता - उम्र ' हम वो दीये हैं , जो जला भी नहीं , बुझा भी नहीं है ....

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