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राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थल। अजमेर में स्थित 5 प्रमुख पर्यटन स्थल

राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थल पर्यटन आज विश्व के सबसे बड़े उद्योगों में स्थान बना चुका है । 
राजस्थान भी पर्यटन स्थलों की दृष्टि से एक सम्पन्न राज्य है , जहाँ हर वर्ष लाखों सैलानी आते हैं । आंकड़े बताते हैं , कि भारत आने वाला तीसरा पर्यटक राजस्थान आता है । 
राजस्थान में पर्यटन विभाग की स्थापना 1956 ई . में की गई और 1989 ई . में इसे उद्योग का दर्जा दिया गया । 
आज प्रत्येक देश पर्यटन से विदेशी मुद्रा प्राप्त करना चाहता है और इस हेतु प्रचार - प्रसार भी कर रहा है । राजस्थान सरकार भी इस दिशा में सराहनीय प्रयास कर रही है । राजस्थान को पर्यटन की दृष्टि से दस सर्किटों में बांटा जाना इसी प्रयास का परिणाम है । यहाँ पर हम राजस्थान के कुछ महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थलों का अध्ययन करेंगे । 


अजमेर :-

अढाई दिन का झोंपड़ा :-

Q:- अढ़ाई दिन का झोंपड़ा कहाँ स्थित है?
मूल रूप से अढ़ाई दिन का झोंपड़ा ' कहलाने वाली इमारत एक संस्कृत महाविद्यालय ( विग्रहराज ) चतुर्थ द्वारा निर्मित ) था , परन्तु बाद में सुल्तान मुहम्मद गौरी के सेनापति ऐबक ने इसे मस्ज़िद में तब्दील करवा दिया। हिन्दू व इस्लामिक स्थापत्य कला के इस नमूने को सुल्तान इल्तुतमिश ने और ज्यादा सुशोभित किया । इसका यह नाम पड़ने के पीछे एक किंवदंती है कि इस इमारत को मन्दिर से मस्जिद में तब्दील करने में सिर्फ अढ़ाई दिन लगे थे । इसलिए इसका नाम ' अढ़ाई दिन का झोंपड़ा पड़ गया । दूसरा मत यह है कि मराठा काल में यहाँ पंजाबशाह बाबा का अढ़ाई दिन का उर्स भी होता था , इसीलिए इसका नाम अढ़ाई दिन का झोंपड़ा पड़ा । 

ख्वाजा साहब की दरगाह:-

अजमेर में सर्वाधिक देशी व विदेशी पर्यटक ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर मन्नत मांगने तथा मन्नत पूरी होने पर चादर चढ़ाने आते हैं । सभी धर्मों के लोगों में ख्वाजा साहब की बड़ी मान्यता है । दरगाह में तीन मुख्य दरवाजे हैं । मुख्य द्वार , ' निज़ाम दरवाजा ' , हैदराबाद के नवाब द्वारा बनवाया गया । मुगल सम्राट शाहजहाँ द्वारा ' शाहजहाँ दरवाजा ' बनवाया गया और सुल्तान महमूद खिलजी द्वारा बुलन्द दरवाजा बनवाया गया । उर्स के दौरान दरगाह पर झंडा चढ़ाने की रस्म के बाद , बड़ी देग ( तांबे का बड़ा कढ़ाव ) जिसमें 4800 किलो तथा छोटी देग में 2240 किलो खाद्य सामग्री पकाई जाती है । जिसे भक्त लोग प्रसाद के तौर पर बाँटते हैं । श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर भी इन देगों में भोजन पकवाते व बाँटते हैं । सर्वाधिक आश्चर्य की बात है कि यहाँ केवल शाकाहारी भोजन ही पकाया जाता है । 


आनासागर झील :-
यह एक कृत्रिम झील है जिसे राजा अजयपाल चौहान के पुत्र अर्णोराज चौहान ने बनवाया । इन्हें ' अन्ना जी ' के नाम से पुकारा जाता था तथा इन्हीं के नाम पर आना सागर झील का नाम रखा गया । इसके निकट दौलत बाग , मुगल सम्राट जहाँगीर द्वारा तथा पाँच बारहदरियां , सम्राट शाहजहाँ द्वारा बनवाई गई थीं । खूबसूरत सफेद मार्बल में बनी बारहदरियां , हरे भरे वृक्ष - कुन्जों से घिरी हैं । यहाँ सुस्ताने तथा मानसिक शांति के लिए पर्यटक आते हैं । 


मेयो कॉलेज :-
भारतीय राजघरानों के बच्चों के लिए यह बोर्डिंग स्कूल हुआ करता था । अंग्रेजों के समय में रिचर्ड बॉर्क द्वारा 1875 ई . में मेयो कॉलेज की स्थापना की गई । इस भवन का स्थापत्य , इंडो सार्सेनिक ( भारतीय तथा अरबी ) शैली का अतुलनीय उदाहरण है । संगमरमर से निर्मित यह भवन अत्यंत आकर्षक है । 

सोनीजी की नसियां :-
19 वीं सदी में निर्मित यह जैन मन्दिर , भारत के समृद्ध मंदिरों में से एक है । इसके मुख्य कक्ष को स्वर्णनगरी का नाम दिया गया है । इसका प्रवेश द्वार लाल पत्थर से बना है तथा अन्दर संगमरमर की दीवारें बनी हैं , जिन पर काष्ठ आकृतियां तथा शुद्ध स्वर्ण पत्रों से जैन तीर्थंकरों की छवियाँ व चित्र बने हैं । 

ब्रह्मा मंदिर:-

पूरे विश्व का एक मात्र ब्रह्मा मंदिर , पुष्कर में स्थित है । संगमरमर से निर्मित , चाँदी के सिक्कों से जड़ा हुआ , लाल शिखर और हंस ( ब्रह्मा जी का वाहन ) की छवि वाले मंदिर में ब्रह्मा जी की चतुर्मुखी प्रतिमा गर्भगृह में स्थापित है । इसी मंदिर में सूर्य भगवान की संगमरमर की मूर्ति प्रहरी की भाँति खड़ी है । इस मूर्ति की विशेषता यह है कि सूर्य भगवान की मूर्ति जूते पहने दिखाई दे रही है । 

सावित्री मंदिर :-

ब्रह्मा मंदिर के पीछे , ऊँची पहाड़ी पर सावित्री मंदिर है जो कि ब्रह्मा जी की पहली पत्नी थी । मंदिर तक पहुँचने के लिए सुविधाजनक सीढ़ियाँ बनी हुई हैं । ऊपर चढ़कर मंदिर से नीचे की ओर झील , मंदिर और रेत के टीलों का विहंगम दृश्य बेहद सुन्दर दिखाई पड़ता है । ऐसी किंवदंती है कि ब्रह्मा जी ने पुष्कर में अपना यज्ञ करने के लिए , गायत्री से दूसरा विवाह किया था । इससे नाराज होकर पहली पत्नी सावित्री ने उन्हें श्राप दिया , जिसके फलस्वरूप ही पूरे विश्व में ब्रह्मा जी का केवल एक ही मंदिर है- पुष्कर में । अब सावित्री मंदिर पर रोप - वे की सुविधा उपलब्ध है । 

पुष्कर सरोवर:-

' तीर्थराज ' के नाम से प्रसिद्ध पुष्कर सरोवर सभी तीर्थस्थलों का राजा कहलाता हैं । इस सरोवर में इबकी लगाने पर तीर्थयात्रा सम्पन्न मानी जाती है , ऐसी मान्यता है । अर्द्ध गोलाकार रूप में लगभग 9-10 मीटर गहरी यह झील 500 से अधिक मंदिरों और 52 घाटों से घिरी हुई है ।


अकबर का दुर्ग ( अजमेर ) :-
अकबर ने अजमेर नगर के मध्य में 1570 ई . में गुजरात विजय की स्मृति में एक दुर्ग का निर्माण करवाया । इस दुर्ग को ' अकबर का दौलतखाना ' और ' अकबर की मैगजीन ' भी कहते हैं । यह राजस्थान का एकमात्र दुर्ग है जो मुस्लिम दुर्ग स्थापत्य पद्धति से बनवाया गया है । 1576 ई . में महाराणा प्रताप के विरुद्ध हल्दीघाटी युद्ध की योजना को अन्तिम रूप इसी दुर्ग में दिया गया । ब्रिटिश राजदूत सर टामस रो जब भारत आया तो मुगल सम्राट जहाँगीर को अपना परिचय पत्र इसी दुर्ग में दिया । 1801 ई . में अंग्रेजों ने इस किले पर अधिकार कर इसे अपना शस्त्रागार ( मैगजीन ) बना लिया ।


तारागढ़ ( अजमेर ):-

 अजमेर जिला मुख्यालय पर स्थित अरावली की पहाड़ियों पर तारागढ़ दुर्ग अब खण्डित दशा में है । इसे ' गढ़ बीठली ' तथा ' अजयमेरु ' भी कहते हैं । शाहजहाँ के शासनकाल में विट्ठलदास गौड़ यहाँ का दुर्गाध्यक्ष था और संभव है कि उस पराक्रमी योद्धा के नाम पर ही इस किले का नाम गढ़बीठली पड़ा हो कर्नल टॉड के अनुसार इस दुर्ग का निर्माण चौहान शासक अजयपाल ने करवाया । तारागढ़ की प्राचीर 14 विशाल बुर्जे हैं जिनमें घूंघट , गूगड़ी तथा फूटी बुर्ज , बाँदरा बुर्ज , इमली बुर्ज , खिड़की बुर्ज और फतेह बुर्ज प्रमुख हैं । तारागढ़ दुर्ग को सन् 1832 में भारत के गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक ने देखा तो उनक मुँह से निकल पड़ा- " ओह दुनिया का दूसरा जिब्राल्टर । ”

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