सरिस्का टाइगर रिजर्व:-
सरिस्का को 1 नवम्बर , 1955 को अभयारण्य का दर्जा दिया गया था , तत्पश्चात् सन् 1978-79 में इसे टाइगर रिजर्व का दर्जा प्रदान कर दिया गया । इसका वन क्षेत्र 1203 कि.मी. में है । बाघ के अलावा यहाँ विविध पशु - पक्षियों की प्रजातियाँ जैसे- नीलगाय , लोमड़ी , जंगली सुअर , खरगोश , तेन्दुआ , चीतल , सांभर , बन्दर पाये जाते हैं । पक्षियों में जंगल बैबलर , बुलबुल , क्विल , केस्ट्रेड सर्पेन्ट , ईगल , रैड परफाउल , सैण्डग्राउज , वुडपेकर आदि पाये जाते हैं ।
अलवर के प्रमुख पर्यटन स्थल
भानगढ़ :-
सरिस्का वन्य अभयारण्य से पचास कि.मी. दूरी पर भानगढ़ स्थित है । आमेर के महाराजा भगवानदास पुत्र माधव सिंह ने अपनी प्रथम नगरी के रूप में भानगढ़ की स्थापना की थी । कालान्तर में भानगढ़ के रान होने के संबंध में किंवदंतियां प्रचलित हो गई । भानगढ़ को भारत में सर्वाधिक रहस्यमयी स्थान होने का गौरव प्राप्त है । आज भी इस किले के खण्डहरों में सात मंजिला महल के अवशेष , सुव्यवस्थित व दुकानें तथा सोमेश्वर महादेव मंदिर , गणेश मंदिर , तालाब नज़र आते हैं ।
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मूसी महारानी की छतरी :-
महाराजा बख्तावर सिंह की रानी मूसी रानी की स्मृति में बनाई गई इस छतरी की वास्तुकला में भारतीय व इस्लामिक शैली का मिश्रण है । सफेद संगमरमर से बनी इस छतरी में 12 विशाल स्तम्भ तथा 27 अन्य स्तम्भ हैं । इसके आन्तरिक भाग में भगवान श्री कृष्ण , श्री रामचन्द्र जी , लक्ष्मी जी और सीतामाता यह छतरियां शोभायमान हैं । महाराजा बख्तावर सिंह के जीवन सम्बन्धित चित्रण भी इस छतरी में विद्यमान है। की छवियां चित्रित हैं । अरावली की पहाड़ियों से घिरी तथा सिटी पैलेस व सागर झील और मन्दिर के पास।
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भर्तृहरि मंदिर:-
अलवर के लोक देवता भर्तृहरि एक राजा थे । उनके जीवन के अन्तिम वर्ष यहीं बीते थे । महाराजा जयसिंह ने 1924 ई . में भर्तृहरि के मंदिर को नया स्वरूप दिया । मंदिर में एक अखण्ड ज्योत सदैव प्रज्ज्वलित रहती है । यहाँ मुख्य मेला भाद्रपद की अष्टमी को लगता है , जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु बाबा करने आते हैं । पास में ही हनुमान मंदिर , शिव मंदिर और श्रीराम मंदिर भी स्थित है ।
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सिलिसेढ़ झील :-
अरावली के पश्चिमी छोर पर , पहाड़ों के बीच प्रसिद्ध सिलिसेढ़ झील स्थित है । अलवर से सरिस्का जाते समय , 15 कि.मी. की दूरी पर यह झील है । इसका निर्माण महाराजा विनयसिंह ने 1845 ई . में सिलिसेढ बांध के रूप में करवाया था । स्थानीय नदी ' रूपारेल ' की एक शाखा को रोक कर यह झील बनवाई गई थी । इस झील के किनारे , हरी भरी वादियों के बीच , मोती सा चमकता , सिलिसेढ़ लेक पैलेस दिखाई देता है , जिसे राजस्थान पर्यटन विकास निगम द्वारा हैरिटेज होटल के रूप में संचालित किया जाता है । सिलिसेढ़ झील में पर्यटकों के लिए बोटिंग तथा बर्ड वॉचिंग की भी सुविधा है । सर्दियों में यहाँ विभिन्न प्रजातियों के पक्षी तथा पानी में तैरती बत्तखें व मगरमच्छ पर्यटकों का मन मोह लेते हैं ।
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