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आप आईएएस क्यों बनना चाहते हो? इस सवाल का जवाब कैसे दें। यूपीएससी की तैयारी कैसे करें। आप आईएएस कैसे बनेंगे

आप आईएएस क्यों बनना चाहते हो? इस सवाल का जवाब कैसे दें। यूपीएससी की तैयारी कैसे करें। आप आईएएस कैसे बनेंगे


आपने क्यों किया आई.ए.एस. बनने का फैसला ? 

यदि आपने आई . ए . एस . बनने का फैसला कर ही लिया है , तो देश के इस सबसे बड़े और काफी कुछ कठिन दंगल में आपका स्वागत है । मेरी शुभकामनाएँ भी हैं । और ईश्वर से आपके लिए प्रार्थना भी है कि वह लम्बे समय तक आपके धैर्य , आपके आत्मविश्वास और आपके जोश को बनाए रखे , क्योंकि ये सभी बातें इसके लिए बहुत ज़रूरी होती हैं । फिर भी , इससे पहले कि मैं आपको यह बताऊँ कि आप आई.ए.एस. कैसे बन सकते हैं , मैं आपसे एक प्रश्न पूछने की , एक बहुत ही ज़रूरी और मूलभूत प्रश्न पूछने की इजाज़त चाहूँगा । मैं आपसे यह प्रश्न इसलिए पूछना चाह रहा हूँ क्योंकि मैंने आई.ए.एस. के विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करने के अपने लम्बे अनुभव में यह पाया है कि हमारे नौजवान जोश में आकर , पर्याप्त सोचे - समझे बिना ही , इस दंगल में कूद पड़ते हैं और कुछ सालों तक पटखनी खाने के बाद पस्त होकर इससे बाहर आ जाते हैं । इसलिए मुझे लगता है कि इस प्रतियोगिता में उतरने से पहले प्रत्येक स्टूडेन्ट को खुद से वह प्रश्न करना ही चाहिए जो अभी मैं आपसे पूछने जा रहा हूँ । मैं आपसे यह पूछने कतई नहीं जा रहा हूँ कि ' आप आई.ए.एस. क्यों बनना चाहते हैं ? ' इसके वही घिसे - पिटे उत्तर सुनते - सुनते मेरे कानों ने अपना धैर्य खो दिया है । वैसे भी , चाहे आप पावर्स के लिए बन रहे हों आई.ए.एस. या सोशल स्टेटस के लिए या शान - शौकत और लालबत्ती वाली गाड़ी के लिए , इससे आपकी तैयारी का कुछ भी लेना - देना नहीं है । आप किसी भी नौकरी में जाने की सोचें , कुछ न कुछ तो ऐसा होता ही है जो आपको आकर्षित करता है , तभी तो आप वहाँ जाना चाहते हैं- बशर्ते कि ऐसा करना आपकी मजबूरी न हो । हाँ , आई.ए.एस. उसमें इस मायने में अभी भी सबसे अलग इसलिए है क्योंकि इसमें ढेर सारे आकर्षण हैं । सच पूछिए तो आकर्षण ही आकर्षण हैं । इसलिए यदि देश के अधिकांश स्टूडेन्ट इसमें जाना चाहते हैं तो मैं इसे ग़लत नहीं मानता । हाँ , अब यह बात अलग है कि यदि हम राष्ट्र के परिप्रेक्ष्य में सोचें तो एक डॉक्टर का या एक इंजीनियर का आई.ए.एस. में जाना हमारी राष्ट्रीय क्षति है , क्योंकि देश ने उसे डॉक्टर या इंजीनियर बनाने में जो खर्च किया है उसका उसे कोई फायदा नहीं मिल सकेगा । आई.ए.एस. तो कोई भी बन सकता है , लेकिन डॉक्टर और इंजीनियर हर कोई नहीं बन सकता । फिर भी , जब तक यूपीएससी ने देश के हर नागरिक को इसमें शामिल होने की इजाज़त दे रखी है , तब तक आपका भी , यानी कि डॉक्टर्स और इंजीनियर्स का भी इस दंगल में स्वागत है । तो अब मैं आता हूँ अपने इस मूल सवाल पर जो मैं आपसे पूछना चाहता हूँ , और चाहता हूँ कि आप मेरे इस सवाल का जवाब पूरी गम्भीरता के साथ दें और काफी विचार करने के बाद दें । तो मेरा सवाल यह है कि ' आपने अपने आप में ऐसा क्या देखा कि आपको लगा कि आप एक आई.ए.एस. अफसर बन सकते हैं ? ' बस एक यही छोटा - सा सवाल है । इससे पहले कि आप इस किताब को आगे पढ़ना शुरू करें , आपको चाहिए कि आप अपना उत्तर ढूँढ लें । दूसरे के उत्तर से आपका काम नहीं चलेगा । इस रास्ते पर , आई.ए.एस. बनने के रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए और आगे बढ़ते ही रहने के लिए आपको खुद के उत्तर की ज़रूरत पड़ेगी । मैं जब अपने पास आए या फोन पर मार्गदर्शन माँग रहे युवाओं से यह प्रश्न पूछता हूँ , तो पहले तो उन्हें यह प्रश्न ही समझ में नहीं आता । दरअसल वे इस प्रश्न को सुनकर सकते में आ जाते हैं , क्योंकि पहले कभी किसी ने उनसे इस तरह का ऊटपटांग प्रश्न किया ही नहीं होता । हर एक से वे अब तक यही सुनते आ रहे थे कि ' तुम कुछ भी कर सकते हो । ' दरअसल , ' कोई कुछ भी कर सकता है ' यह एक आदर्शवादी उपदेश है और किसी को उकसा कर काफी कुछ मिसगाइड करने वाल भी । मैं यह बिल्कुल नहीं मानता कि ' कोई कुछ भी कर सकता है । ' हाँ , यह ज़रू = मानता हूँ कि ' ऐसा कोई नहीं है जो कुछ भी न कर सके । ' हरेक के पास कुछ कुछ करने की क्षमता ज़रूर होती है , लेकिन सब कुछ करने की नहीं । मैंने इसीलि आपसे यह प्रश्न किया है , ताकि इस सवाल का फैसला यहीं पर हो जाए कि क आप भी इसी तरह के किसी उकसावे में तो नहीं आ गए हैं ।

of से कुछ प्रमुख उत्तर इस प्रकार थे • बहुत सोचने - विचारने के बाद और कुछ ने तत्काल ही जो उत्तर दिए , उनमें मैं थू - आउट फर्स्ट क्लास रहा हूँ । इसलिए मुझे लगता है कि में यह कर लूँगा । मैं खूब मेहनत कर सकता हूँ । 
आपने क्यों किया आई.ए.एस. बनने का फैसला ? 


✔ सकते हो । . लोग कहते हैं कि तुम्हारी याद्दाश्त बहुत अच्छी है , तुम आई.ए.एस. बन 10 मुझे यह करना ही है , क्योंकि मेरे पापा - मम्मी ऐसा चाहते हैं और मैं उन्हें निराश नहीं करना चाहता- चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए । मैं रट्टा मारने में माहिर हूँ । मैं कुछ भी रट सकता हूँ , यहाँ तक कि मैथेमैटिक्स भी । मैंने कसम खा रखी है कि मुझे यह करना ही है । दोस्तो , कुछ इसी तरह के उत्तर बदले हुए शब्दों में मुझे मिलते रहते हैं और मुझे यह लिखते हुए अफसोस हो रहा है कि ये उत्तर मुझे संतुष्ट नहीं कर पाते और मुझे अपने उन नौजवान साथियों से कहना पड़ता है कि ' तुम अपने उद्देश्य के बारे में एक बार फिर से सोचो । ' ऐसा इसलिए क्योंकि इनमें से कोई भी गुण ऐसा नहीं है जो आपको आई.ए.एस. बना सकेगा , और न ही इनमें से कोई गुण ऐसा है जिसके न रहने पर आप आई.ए.एस. नहीं बन सकेंगे । आप परेशान न हों मेरे इस कथन को पढ़कर । आगे चलकर आप अच्छी तरह जान जाएँगे कि आखिर आई.ए.एस. बनने के लिए चाहिए क्या । अब मैं आपके सामने कुछ सच्ची कहानियाँ पेश करने जा रहा हूँ आप अपनी यात्रा को शुरू करने से पहले , या यदि यात्रा शुरू कर चुके हों तो उसे खत्म करने से पहले अपना सही - सही मूल्यांकन कर सकें कि आप आई.ए.एस. के इस रास्ते पर चलने वाले किस तरह के राहगीर हैं । यह मूल्यांकन आपके सामने आपके यथार्थ को , आपकी सच्चाई को प्रस्तुत करके आपको अधिक स्पष्ट और ठोस बनाएगा । इससे अंततः आपको फायदा ही होगा । 
✓ मेरे पास एक लड़का आया- स्मार्ट , जोशीला और पढ़ने - लिखने में काफी कुछ ठीक - ठाक सा ही । वह मुझसे जानने आया था कि आई . ए . एस . की तैयारी कैसे करनी चाहिए । जब मैं उसे तैयारी करने के कुछ सूत्र बता रहा था , उसी दौरान व बार - बार यह कहे जा रहा था कि‘सर , इसके लिए मुझे कुछ भी क्यों न करना पड़े मैं करूँगा । यहाँ तक कि मैं अपना सर तक कटवा सकता हूँ । मुझे यह बनना है । ' मैंने उसे एक महीने बाद फिर से आने को कहा , और वह आ गया । बात की शुरुआत उसने इस प्रश्न से की- ' सर , मैंने सुना है कि आई . ए . एस . अफसरों की तनख्वाह कुछ ज्यादा नहीं होती ? ' मैंने कहा , ' तुमने ठीक सुना है । ' उसका अगला प्रश्न था- ' सर , मैंने यह भी सुना है कि उनके ट्रांसफर भी काफी जल्दी जल्दी होते रहते हैं , जिसके कारण उनके बच्चों की पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाती ? ' उसकी यह बात भी ठीक थी । तीसरा प्रश्न उसने थोड़ा सकुचाते हुए किया कि ' सर , क्या यह सही है कि एमपी - एमएलए जैसे लोग कलेक्टर को डाँटकर चले जाते हैं ? ' मैंने कहा कि ' हमेशा तो ऐसा नहीं होता , लेकिन मैं यह भी नहीं कह सकता कि ऐसा हो ही नहीं सकता ।
आपने क्यों किया आई.ए.एस. बनने का फैसला ? 

 ' इतनी बातचीत के बाद अब आप उस नौजवान का फाइनल उत्तर सुनिए जो एक महीना पहले आई.ए.एस. बनने के लिए अपनी गर्दन तक कटवाने को तैयार था । ' तो सर , मैं सोच रहा हूँ कि जब आई.ए.एस. बनने के बाद भी इतनी सारी झंझटें रहेंगी , तो फिर बनने से फायदा ही क्या है । ' मैंने उसके निर्णय का सम्मान करते हुए उससे मुक्ति पा ली , क्योंकि उसको आई.ए.एस. बनाया ही नहीं जा सकता था । ✓ एक लड़की थी । एमबीबीएस के आखिरी साल में थी । उसका दावा था कि ' मैं फर्स्ट अटैम्प्ट में ही क्वालीफाई करूँगी और वह भी टॉप टेन की रैंक के साथ । ' मैं उसके इस उबाल में पानी के छींटें डालता , किन्तु बेकार । दुर्भाग्य से तीन अटैम्प्ट देने के बाद चौथा उसने न देने का फैसला किया , लेकिन सबसे दुर्भाग्यजनक बात उसकी यह रही कि वह प्रारम्भिक परीक्षा तक क्वालीफाई नहीं कर पाई । एक लड़के ने बीए तक की अपनी सभी परीक्षाएँ कम्पार्टमेंट के साथ पास की थीं । फिर भी उसे लगता था कि वह आईएएस कर सकता है क्योंकि उसने सुन रखा था कि इसे कोई भी कर सकता है , और मज़ेदार बात तो यह कि उसे अपने सुने हुए पर न केव श्वास ही था बल्कि उसने उस पर चलना भी शुरू कर दिया था । अच्छा हुआ कि सच्चाई को जानने में उसने अपनी ज़िन्दगी के दो साल से अधिक नहीं गँवाए । अब उसने अपना रास्ता बदल दिया था । कई सारे स्टूडेन्ट्स को भाषा नहीं आती । जो आती भी है , वह शुद्ध रूप से ग़लत होती है । वे ग्रेजुएट हो गए हैं । लेकिन किसी भी विषय का उन्हें कोई भी और कुछ भी ज्ञान नहीं है । यहाँ तक कि उन्हें आई.ए.एस. परीक्षा की पद्धति तक् के सबसे कीमती तीन - चार साल बर्बाद भी कर देते हैं । नहीं मालूम । और ऐसे विद्यार्थी फैसला कर बैठे होते हैं कि ' मैं आई.ए.एस. बनूँगा । ' उससे से भी दुःखद बात यह है कि इस दुष्चक्र में फँसकर वे अपने जीवन
 लायक बना जा सकता है , बशर्ते ....

आपने क्यों किया आई.ए.एस. बनने का फैसला ? 


 मैंने अभी तक जितने भी लोगों को आईएएस के लिए गाइड किया है , उनमें से कितने इसके लायक थे इसका कोई विशेष मतलब नहीं है । मतलब तो इस बात का है कि उनमें से कितनों ने स्वयं को इसके लायक बनाया , और यही सब कुछ है । मेरा यह मानना है कि ' लायक कोई होता नहीं है । लायक बनना पड़ता है । इसमें प्रथम श्रेणी वाले रह जाते हैं , क्योंकि वे स्वयं को ऑलरेडी इसके लायक समझने की गलतफहमी में रहते हैं । जबकि सेकेन्ड डिविज़नर और यहाँ तक कि थर्ड डिविज़नर तक बाज़ी मार ले जाते हैं , क्योंकि वे जानते है कि ' मैं इसके लायक नहीं हूँ , पर मुझे लायक बनना है । ' हाँ , मैं इस बात का जवाब ज़रूर दे सकता हूँ कि कितने प्रतिशत लोगों ने स्वयं को इसके लायक बनाया । लेकिन मेरा उत्तर आपको निराश ही करेगा , क्योंकि यह एक प्रतिशत का भी आधा है । जी हाँ , अधिक से अधिक आधा प्रतिशत , यानी कि प्रत्येक दो सौ विद्यार्थियों में से केवल एक विद्यार्थी । 
आपने क्यों किया आई.ए.एस. बनने का फैसला ? 

हाँ , पर इस एक विद्यार्थी की सफलता पक्की होती है । 12 मैं जानता हूँ कि आपको मेरे इस आँकड़े पर यक़ीन नहीं आएगा और आप इसे मेरे द्वारा अपने पक्ष में पेश किया गया एक खूबसूरत तर्क भी समझ सकते हैं , क्योंकि सफलता का प्रतिशत भी तो लगभग यही रहता है । लेकिन आपको मुझ पर विश्वास करना ही चाहिए । उदाहरण के लिए , मेरा यह मानना है कि आईएएस की परीक्षा की सबसे बड़ी और कड़ी चुनौती होती है सटीक उत्तर लिख पाना । मैंने लड़कों को ( इनमें लड़कियाँ भी स्वयं को शामिल समझें ) प्रश्नों को समझने और उनके उत्तर लिखने का ढंग बताने के बाद उनसे ज़ोर देकर कहा कि वे मुझे कुछ • उत्तर लिखकर दिखाएँ ताकि मैं उनके उत्तरों का मूल्यांकन करके उन्हें सही तरीके से गाइड कर सकूँ । पर आपको शायद विश्वास नहीं होगा कि इसका प्रतिशत आधे का भी आधा रहा- बार - बार याद दिलाने के बावजूद । वे स्वयं को उत्तर लिखने की ज़हमत में डालना ही नहीं चाहते थे । हालाँकि वे जानते थे कि उनके उत्तर लिखने में काफी खामियाँ हैं , फिर भी उन्हें लगता था कि परीक्षा में वे अच्छा कर लेंगे । उनके इस लगने का तार्किक आधार क्या था , वे खुद भी नहीं जानते थे । लेकिन प्रैक्टिस करके अपनी इस कमी को दूर करना उन्हें गवारा नहीं हुआ । मैं अपने विद्यार्थियों से कहता हूँ कि वे रोजाना रेडियो पर समाचार सुना करें , किन्तु इसे निभा पाने की अधिकतम अवधि डेढ़ माह की ही रही है । वे किसी न किसी बहाने की आड़ लेकर न्यूज़ सुनने से बचना चाहते हैं । लगभग यही अखबारों के साथ भी होता है । मैं उनसे कहता हूँ कि इसके लिए रोजाना डेढ़ घंटा पर्याप्त है । केवल महत्वपूर्ण खबरों को पढ़ो और फिर उन पर भिन्न - भिन्न कोणों से सोचो । इस मामले में वे मुझसे आगे निकल जाते हैं । अखबारों को वे रोजाना तीन घंटे से भी अधिक देते हैं । लेकिन बाद में उनसे पूछिए कि ' क्या पढ़ा ? ' तो उनके पास बताने के लिए कुछ विशेष नहीं होता , क्योंकि वे थोड़ा - थोड़ा सब कुछ पढ़ते हैं । पर कोई भी एक चीज़ पूरी तरह और ढंग से नहीं पढ़ते । फलस्वरूप वे कुछ भी नहीं पढ़ते । कुल मिलाकर यह कि वे पूछते हैं कि ' हम तैयारी कैसे करें ? " उन्हें वह तरीका भी बताया जाता है जो होना चाहिए । वे सुनते हैं । उन्हें अच्छा लगता है । वे प्रभावित भी होते हैं । लेकिन करते वे वही हैं , जो वे अब तक करते रहे हैं । यदि कुछ दिनों तक मेरी बात मान भी लेते हैं , तो कुछ दिनों बाद पुनः अपने ही ढर्रे पर लौट आते हैं । ऐसे लोग एक - दो नहीं होते । सच्चाई तो यह है कि एक - दो लोग ही ऐसे होते हैं जो ऐसे नहीं होते । अब ऐसों का भला आप क्या करेंगे ? मैंने यह महसूस किया है और बिल्कुल भी ग़लत महसूस नहीं किया है कि आईएएस की तैयारी करना आज कॅरिअर का विकल्प नहीं , बल्कि जीवन का एक फैशन बन गया है- सबसे सम्मानजनक फैशन । जब कोई पूछता है कि ' तुम आजकल क्या कर रहे हो ? ' तो यह बताने में सीना थोड़ा फूल जाता है कि ' आईएएस की तैयारी कर रहा हूँ । ' जबकि ज़्यादातर लोग तैयारी के बहाने टाइम् पास कर रहे होते हैं , क्योंकि उन्हें मालूम ही नहीं रहता कि तैयारी करनी कैसे चाहिए । यदि इन्हें बताया भी जाए तो वे सुनेंगे सबकी , किन्तु करेंगे अपने मन की ही । मुझे लगता है मित्रो कि जब आप यह सोचें कि ' मुझमें ऐसा क्या है कि ' आईएएस बन जाऊँगा ' , तो आपको अपने अन्दर इसी तत्व की तलाश करनी चाहि कि ' आप स्वयं को इसके अनुकूल कितना ढाल सकते हैं । ' आप जो हैं , वह तो ही । हो सकता है कि आपका मैटल आईएएस से भी बेहतर हो । लेकिन इस बात स्वयं को आईएएस के अनुकूल बनाना होगा । को कतई न भूलें कि ' जहाँ सुई की ज़रूरत होती है , वहाँ तलवार व्यर्थ है । ' आपको ऐसा संभव होगा कैसे ? डटे रहने की क्षमता से ठानने की क्षमता तो बहुतों में देखी है मैंने , लेकिन ठानकर यह संभव होगा मानसिक ठोसपन से , विचारों की दृढ़ता से और ठानकर उस पर उस पर डटे रहने वालों की गिनती उंगलियों पर ही होती है । मैं यह मानता हूँ कि सकता है , फिर चाहे वह थर्ड डिविज़नर ही क्यों न हो । जो ठान सकता है और ठानकर उस पर अमल कर सकता है , वह कुछ भी कर मानसिक मज़बूती के बिना आईएएस की तैयारी न केवल दूर की कौड़ी ही होगी , बल्कि यदि एकदम असंभव नहीं तो बहुत कठिन ज़रूर हो जाएगी । इसके अभाव में , मानसिक मज़बूती के अभाव में , आपका दिमाग ' बहानों की उपज स्थली ' बन जाएगा और आप हर उस काम को टालने लगेंगे जिसे किया जाना ज़रूरी होता है । उदाहरण के लिए , एक लड़की ने मुझसे पूछा कि ' सर , आपकी क्लास कहाँ लगती है ? ' मेरे बताने के बाद उसका उत्तर था कि ' सर , मैं तो ज्वॉइन नहीं कर सकती । ' क्या आप जानना चाहेंगे कि क्यों ? इसलिए नहीं कि उसके लिए फीस ज़्यादा थी या उसके पास टाइम नहीं थ , या उसे क्लास की ज़रूरत नहीं थी । कारण केवल यह था कि मेरी क्लास और उसके घर के बीच तीन किलोमीटर का फासला था । अब आप इसे क्या कहेंगे ? 14 नई दिल्ली में मैं हर महीने लड़कों को तीन दिन का मार्गदर्शन देने लगा , पूरे तीन दिन का कि उन्हें आईएएस की तैयारी करनी कैसे चाहिए । पूरे देश के विद्यार्थी इसमें आने लगे । बहुत से लोग मुझसे फोन करके पूछते कि ' सर , आपकी अगली क्लास कब लगेगी ? ' मैं यह जानते हुए भी कि मेरी अगली क्लास अगले महीने लगने वाली है , उनसे कहता था , ' मुझे मालूम नहीं ' , क्योंकि मैं जानता था कि अगले महीने भी उनका फिर से यही प्रश्न होगा कि ' सर , आपकी अगली क्लास कब लगेगी ? ' क्या इस तरह के प्रश्नों के सिलसिले का कोई अंत होता है ? कभी नहीं । आइडेंटीफाइ कीजिए , पहचानिए कि वह कौन है जो आपसे इस तरह की बातें करवाता है , जैसी कि उस लड़की ने की और जो अक्सर ज़्यादातर विद्यार्थी करते हैं । मुश्किल नहीं है इसे पहचानना । बहुत ज़रूरी है इसे पहचानना , अन्यथा आप IAS कैसे बनेंगे यह आपको हमेशा गच्चे देता रहेगा । आपको लगेगा कि आप तो वह सब कुछ कर रहे हैं जो किया जाना चाहिए । जबकि आप कर वह रहे होते हैं , जो आप करना चाहते हैं । इन दोनों में बहुत फर्क है- ' जो होना चाहिए ' और ' जो मैं चाह रहा हूँ . कि होना चाहिए ' में । और यही फर्क आपकी सफलता और असफलता का निर्धारण करता है । आईएएस की परीक्षा को इस बात से तनिक भी लेना - देना नहीं है कि आप क्या चाहते हैं । वह तो केवल यह जानती है कि ' वह क्या चाहती है ' ।
आपने क्यों किया आई.ए.एस. बनने का फैसला ? 

 तो विश्वास कीजिए कि यूपीएससी ( जो आईएएस की परीक्षा लेता है ) के चाहने और आपके चाहने के बीच न केवल एक खाई ही है , बल्कि एक टकराव भी है । इस खाई को , इस टकराव को केवल मानसिक मज़बूती से ही दूर किया जा सकता है । मुझे तो अन्य कोई रास्ता दिखाई नहीं देता । 15 जब एक बार आपके पास यह मानसिक मज़बूती आ जाती है , तो विश्वास कीजिए कि आपके अन्दर अपने - आप ही कुछ ऐसा घटने लगता है , होने लगता है कि आप स्वयं को अपने लक्ष्य के करीब महसूस करने लगते हैं । वास्तव में , इसके माध्यम से रहस्य का सिद्धांत काम करने लगता है और आप पाते हैं कि आपके चारों तरफ का वातावरण धीरे - धीरे आपके अनुकूल होने लगता है । इसी बात को लेखक पाएलो कोएलो ने अपने उपन्यास ' दि अलकेमिस्ट ' में इस तरह कहा है कि " पूरी कायनात आपको सफल बनाने के लिए षड्यंत्र रचने लगती है । " अन्यथा तो आपको यही लगता है कि सब कुछ उल्टा - पुल्टा हो रहा है और पूरी दुनिया आपकी दुश्मन बनी हुई है । तो आइए , अब मैं बताता हूँ कि जब आप एक बार फैसला कर लेते हैं और उस पर अडिग हो जाते हैं , खासकर आईएएस की तैयारी करने का फैसला ( बनने ) का फैसला नहीं ) , तो आपके साथ क्या - क्या होता है 1 . 2 . सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बात यह होगी कि आपके दिमाग में बहानेबाज़ी के झाड़ - झंखाड़ उगने और पनपने बंद हो जाएँगे । बस एक ही बात दिमाग़ में रहेगी कि ' करना है , तो करना है । ' आईएएस की तैयारी आपकी दिनचर्या की सूची में पहले स्थान पर आ जाएगी , न कि यह कि ' जब टाइम मिलेगा , तब देखेंगे । ' आईएएस इतना आसान काम नहीं है कि आप इसे पार्ट टाइम या एक्स्ट्रा टाइम में कर सकें । यदि आप ऐसा समझते हैं तो बेहतर है कि अपना समय खराब न करें । कुछ दिनों के बाद ही आईएएस की तैयारी करने वाले विद्यार्थी ऊबने की , करने बोर होने की , थकने की तथा पढ़ने के दौरान नींद आने की शिकायतें लगते हैं जो कि सच्ची होती हैं । यदि आप मानसिक रूप से कमजोर है और आपने इसे बतौर एक फैशन पहन रखा है , तो ऐसा होना स्वाभाविक है । जिस दिन ये शिकायतें खत्म हो जाएँ , समझ लीजिएगा कि अब आप आईएएस की तैयारी के लिए मानसिक रूप से फिट हो गए हैं । हालांकि थकेंगे तो आप अभी भी , लेकिन केवल दो स्थितियों में या तो तब जब बहुत पढ़ चुके होंगे , या फिर तब जब किसी कारण से पढ़ ही नहीं होंगे । ऐसा आपके मन में पैदा हुए अपराधबोध के कारण होगा । विषय की आपकी समझ और आपकी स्मरण शक्ति , दोनों धीरे - धीरे तेज होती जाएँगी । इसका एक स्थापित विज्ञान है । विज्ञान यह है कि आपकी मानसिक दृढ़ता पढ़ाई के प्रति आपके मन में रुचि पैदा कर देगी और जिस चीज़ में हमारी रुचि हो जाती है , वह हमें अपेक्षाकृत जल्दी और ज़्यादा समझ में आने लगती है । जब कोई विषय समझ में आने लगता है , तो वह स्वाभाविक रूप से लम्बे समय तक याद भी रहता है । यही कारण है कि आपको अपनी पसंद की फिल्म की कहानी एक बार में ही याद हो जाती है और फिर लम्बे समय तक याद बनी रहती है । आप सक्रिय हो उठते हैं , क्योंकि आपकी मानसिक मज़बूती आपके अन्दर की ऊर्जा के चारों चैनलों को उन्मुक्त कर देती है । आप शारीरिक रूप से स्वयं को चुस्त - दुरुस्त तथा मानसिक रूप से प्रसन्न महसूस करते हैं । आपमें सकारात्मक सोच के आने की शुरुआत हो जाती है , जिसके कारण आपका आत्मविश्वास क्रमशः बढ़ता जाता है । अपने उद्देश्य से आप भावनात्मक रूप से इतनी गहराई से जुड़ जाते हैं कि भावना की ऊर्जा आपको लगातार कुछ न कुछ करते रहने को उकसाती रहती है , और यह एक अच्छी बात होती है । जब आपको इन तीनों ऊर्जाओं का संयुक्त रूप से सहारा मिलता है , तो तीनों मिलकर आपके लिए एक चौथी ऊर्जा का निर्माण करती हैं , जिसे मैं आध्यात्मिक ऊर्जा कहता हूँ । यह ऊर्जा आपके अंदर ' नाईस फीलिंग ' लाती है , हल्कापन लाती है और आपके लिए ऐसे संयोगों की रचना करती है जिससे लक्ष्य तक पहुँचने में आपको मद मिलती है । इस पर संदेह मत कीजिए । आगे चलकर आप इसे महसूस करेंगे ।

आपने क्यों किया आई.ए.एस. बनने का फैसला ? 


5 . निःसंदेह यह कोई गुड्डे - गुड्डियों का खेल नहीं है । परीक्षा कठिन है । इसलिए सफलता के लिए अक्सर संदेह बना रहता है । यह आपके साथ ही नहीं होता , सबके साथ होता है । आपके मुँह पर तो लोग यही कहेंगे कि ' मेहनत करो , तुम्हारा हो जाएगा , लेकिन पीठ पीछे या मन ही मन सो यही हैं कि ' बच्चू , पता लगेगा जब ऊँट पहाड़ के नीचे आएगा । ' यानी कि आप एक तरह की अदृश्य नकारात्मक ऊर्जाओं से घिरे रहेंगे । यह नकारात्मक ऊर्जा आपकी चेतना पर आघात करेगी । इससे आप डिप्रेशन में आ सकते हैं , दबाव में आकर टूट सकते हैं । मानसिक मज़बूती में यह क्षमता होती है । कि वह इस नकारात्मक ऊर्जा को एक चुनौती में तब्दील करके इसे आपकी शक्ति बना देती है । चुनौती जितनी प्रबल होती है , उसका मुकाबला करने वाली शक्ति को उससे कहीं ज़्यादा प्रबल होना पड़ता है । इसलिए यह आपके साथ भी होगा । यहाँ मैं यह भी बताना चाहूँगा कि मानसिक मज़बूती का जादू केवल आईएएस की तैयारी में ही काम नहीं करता , बल्कि ज़िन्दगी के हर क्षेत्र में काम करता है । वहाँ तो उसकी बहुत ही ज़्यादा ज़रूरत पड़ती है जहाँ उद्देश्य बड़ा और कठिन होता है , और ज़ाहिर है कि आईएएस बनने का उद्देश्य एक बड़ा और कठिन उद्देश्य है । ध्यान रखें कि मैं जिस मानसिक मज़बूती की बात कर रहा हूँ , वह महज़ उत्तेजना में आकर लिया गया निर्णय नहीं है कि ' मुझे आईएएस बनना ही है । ' ज़्यादातर लोग ऐसा ही तो करते हैं , जो बाद में काम नहीं आता है । यह एक उफान होता है , जो थोड़े समय बाद ही बैठ जाता है । यह केवल कह देने भर में नहीं हो जाता बल्कि पहले सोच - समझकर कहना पड़ता है , यानी कि निर्णय लेना पड़ता है । और जब एक बार निर्णय ले लिया , तो फिर उस निर्णय को सिद्ध करने के लिए जुटना पड़ता है , कुछ करना पड़ता है । लोगों को मैंने अक्सर यह कहते हुए सुना है कि ' ग़लत निर्णय हो गया । ' निर्णय गलत नहीं होते हैं । निर्णयों को सही सिद्ध करने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया गलत होती है । यदि आप में इतना दम नहीं है कि आप इस सही प्रक्रिया को जानकर उसे निभा सकें , तो बेहतर है कि इसका निर्णय ही न लें । यदि आप निर्णय ही नहीं लेते हैं तो कोई आपसे यह नहीं कहेगा कि ' देखो , यह कैसा लड़क है । इसने आईएएस की परीक्षा ही नहीं दी । ' लेकिन यदि आपने देने का निर्णय ले लिया और उसके अनुकूल कर्म नहीं कर पाए तो पक्का है कि असफलता हाथ लगेगी , और तब लोग कहेंगे कि बच्चू और दो आईएएस की परीक्षा । बड़े बनने चले थे आईएएस । ' इसलिए मुझे लगता है कि इस बारे में निर्णय बहुत सोच समझकर ही लिया जाना चाहिए । अन्यथा मगन रहिए अपनी वर्तमान दुनिया में सोच - समझकर लिया गया निर्णय ही आपको मानसिक मजबूती दे सकता है । तो अब सवाल यह है कि सोचा - समझा कैसे जाए । इस बारे में मैं आपसे कुछ बातें करना चाहूँगा । ये बातें मेरे अपने अनुभव , मेरे प्रयोग , मेरे निरीक्षण तथा अध्ययन पर आधारित हैं । इसलिए में इनके व्यावहारिक होने का दावा कर सकता 18 आंतरिक ज़रूरत आपको बड़ी बारीकी के साथ इस तथ्य की जाँच- -पड़ताल करनी पड़ेगी कि आईएएस बनना आपका ऊपरी दिखावा भर है या आपकी आंतरिक ज़रूरत है । यह वैसी ही बात है कि आपको किसी से सच्चा प्रेम है या केवल ऊपरी आकर्षण भर । यदि यह आपकी आंतरिक ज़रूरत है , यदि आपको किसी से सच्चा प्रेम है तो आपको अपने प्रेमी की हर चीज़ सुहावनी लगने लगती है , वह चीज़ भी जिससे दूसरे लोग चिढ़ते हैं । आप उससे मिलने को बेचैन रहते हैं और आपको लगता है कि यदि वह नहीं मिली / मिला , तो पूरी जिंदगी अधूरी रह जाएगी । इसलिए आप उसे पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं । नहीं क्या ? ( ii ) पढ़ने में रुचि आईएएस बनने के लिए आपको ग्रेजुएट होना होता है । यानी कि इसकी पढ़ाई करने से पहले आप कम से कम चौदह सालों तक पढ़ाई कर चुके हैं । पढ़ाई के अनुभव की यह पूँजी आपके पास मौजूद है । आप जानते हैं और आप ही अच्छी तरह से जानते हैं कि पढ़ने में आपको मज़ा आता है या नहीं । यदि यह आपको बोझ लगता है , तो फिर यह आपके लायक नहीं है । ' पढ़ने में रुचि ' से मेरा मतलब रोजाना 15-15 घण्टे और इस तरह लगभग तीन - चार साल तक पढ़ते रहने की क्षमता से नहीं है । मेरा मतलब तो सिर्फ इस बात से है कि फिलहाल आप इसको एन्जॉय करते हैं या नहीं । बाद में भले ही ज़िन्दगी भर किताबों का मुँह मत देखिएगा , लेकिन फिलहाल तो आपकी उनसे मुहब्बत होनी ही चाहिए और उनमें स्वाद भी आना ही चाहिए , क्योंकि यही काम तो आपको मुख्य रूप से करना है । आईएएस बनने का सारा काम ही पढ़ना और पढ़े हुए को लिखने का है । यह कतई जरूरी नहीं है कि आप खूब पढ़ें और पढ़ते ही रहें । यह फालतू की बात है और जो लोग ऐसा कहते हैं , वे मूलत : अपनी बातों से स्टूडेन्ट्स के दिमाग़ में एक आतंक पैदा करना चाहते हैं । मैं समझता हूँ कि यदि कोई प्रतियोगी पूरी गम्भीरता और प्रतिबद्धता के साथ रोज़ाना पाँच से छह घंटे पढ़ता है , तो वह पर्याप्त है । हाँ , यह पढ़ाई पूरी रुचि के साथ होनी चाहिए , खानापूर्ति के रूप में नहीं । यदि आप जानना चाहते हैं कि आपको किस प्रकार वैज्ञानिक तरीके से पढ़ाई करनी चाहिए , तो आप मेरी पुस्तक ' पढ़ो तो ऐसे पढ़ो ' पढ़ सकते हैं । ( iii ) निरंतरता का निर्वाह खरगोश और कछुए की वह कहानी तो आपने पढ़ी या सुनी ही होगी जिसमें बहुत ही धीमी चाल से चलने वाला कछुआ जीतता है , और वह भी दौड़ लगाने वाले खरगोश के मुकाबले । कछुए की जीत हमारी ज़िंदगी में निरंतरता की शक्ति को प्रतिपादित करती है । कछुआ जीता ही इसलिए था क्योंकि उसने चलना बन्द नहीं किया- चाहे धीरे - धीरे ही क्यों न चला हो । आईएएस में अध्ययन की निरंतरता की बहुत अधिक ज़रूरत पड़ती है क्योंकि इसके विषयों और उनकी तैयारी की प्रकृति कुछ ऐसी है कि इसके बिना बात बनती नहीं है । यहाँ यूनिवर्सिटी की वह रणनीति काम नहीं करती कि परीक्षा के दो महीने पहले जमकर पढ़ लिए और आ गए फर्स्ट डिविज़न । उदाहरण के लिए , सामान्य ज्ञान की तैयारी की बात लीजिए । इसक आईएएस बनने में बहुत महत्वपूर्ण रोल रहता है । यह प्रारम्भिक परीक्षा भी है , मुख्य परीक्षा में भी है और इन्टरव्यू में भी रहता है । इसकी तैया आप समाचार - पत्र और पत्रिकाओं के बिना नहीं कर सकते । ज़ाहिर है इसके लिए आपको रोज़ाना समय निकालना ही होगा , फिर चाहे आप कै भी निकालें यह आपके ऊपर है । यूपीएससी को आपके बहाने से क लेना - देना नहीं है ।

आपने क्यों किया आई.ए.एस. बनने का फैसला ? 


( iv ) मानसिक क्षमता यह प्रतियोगिता है ही मुख्यतः मानसिक । इस दंगल में हिन्दुस्तान अच्छे - अच्छे मस्तिष्क आपस में टकराते हैं और अपनी - अपनी क्षमताओं के अनुसार जीत दर्ज कराते हैं । तो ज़ाहिर है कि आखिर मानसिक क्षमता का एक स्तर तो होना ही चाहिए । यह बात अलग है कि फिलहाल न हो । लेकिन उसे बढ़ाने की दृढ़ इच्छाशक्ति और कर्म करने का साहस तो होना ही चाहिए । उस लड़के की तरह फालतू का दुस्साहस करने से अंततः आपको क्या मिलेगा , जो मेरे मना करने के बावजूद आईएएस की तैयारी के लिए पाँच साल तक दिल्ली में जाकर रहा ? उसका छोटा गरीब भाई । जूस बेच - बेचकर उसके लिए खर्च भेजता रहा । ईश्वर की कृपा हुई उस पर कि कम से कम पाँच साल बाद तो उसने अपने घर लौटने का निर्णय ले लिया । 3 . 4 . मुख्य परीक्षा में जिस तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं , उनका परफेक्ट उत्तर तभी दिया जा सकता है जब विषय पर आपकी पकड़ अच्छी हो । यह पकड़ विषय को रटने से नहीं बल्कि विषय को समझकर अपने दिमाग़ में लेने से बनती है । ऐसा होना तभी संभव होता है , जब विषय को थोड़ा पचा थोड़ा रोज़ाना पढ़ा जाए और उस पर सोचा भी जाए । एक बात और । आईएएस की तैयारी एक सौ मीटर की दौड़ की बजाय एक मैराथन दौड़ है , जिसमें फर्राटे से भागने वाला धावक बहुत जल्दी थककर बैठ जाता है । यह मंथर गति से , स्थिर तरीके से पूरी की जाने वाली दौड़ है , जिसे निरंतरता की नीति से ही निभाया जाना मुमकिन होता है । ' मानसिक क्षमता ' कहने का मेरा आशय क्या है ? यही कि आपमें विषय को समझने की क्षमता हो । 1 . 2 . 5 . किसी टॉपिक को समझने के बाद आप उसे दूसरों को भी समझा सकते हों , उस पर बातचीत कर सकते हों । आप किसी विषय पर अपने विचार दे सकते हों । आपकी स्मरण शक्ति बहुत अच्छी न सही , लेकिन अत्यंत सामान्य भी न हो । तथ्य कुछ समय तक आपको याद रहते हों और दुहराने पर तो तुरंत याद आ जाते हों । भाषा भी ठीक - ठाक तो हो ही । ठीक से लिख भी लेते हों 7 ( v ) और बोल भी लेते हों । यदि अभी बोल न भी पा रहे हों , तो कोई बात नहीं । यदि अभी से अभ्यास करना शुरू कर देंगे , तो बोलने भी लगेंगे । बाहरी सपोर्ट चूँकि मैं आईएएस बनने की प्रक्रिया को अपेक्षाकृत एक लम्बी प्रक्रिया मानकर चलता हूँ , इसलिए मुझे लगता है कि आपके साथ कुछ बाहरी मदद और समर्थन तो होना ही चाहिए । लड़कियों के लिए तो इस तरह का समर्थन और भी ज़रूरी हो जाता है क्योंकि उन्हें जहाँ अपने परिवार वालों की इच्छा अनिच्छा के साथ तालमेल बैठाना पड़ता है , वहीं विवाह के लिए बढ़ती हुई उनकी उम्र उनके माता - पिता के सामने एक परेशानी खड़ी करने लगती है । एक बहुत ही अच्छी बात यह है कि जब मैं बाहरी सपोर्ट की बात कह रहा है । हूँ , तो सौभाग्य से उसमें धन के सपोर्ट की ज़रूरत नहीं है , जबकि आज यदि आप कोई भी प्रोफेशनल कोर्स करें तो आपको काफी रुपयों की ज़रूरत पड़ेगी । थैंक गॉड कि फिलहाल इसके लिए इस तरह की कोई अनिवार्यता नहीं है । केवल थोड़े से रुपए चाहिए किताबों के लिए और हर महीने कुछ सौ रुपए न्यूज़ पेपर्स और गिनी - चुनी कुछ पत्रिकाओं के लिए । बस , इतना ही । जहाँ तक कोचिंग के खर्च का प्रश्न है , उसको यूपीएससी ने अनिवार्य नहीं किया है । यह पूरी तरह आपके ऊपर है कि आपको उसकी कितनी ज़रूरत है । हाँ , यह जानना एक अनिवार्यता ही है कि तैयारी की कैसे जानी चाहिए । दरअसल , यही सब कुछ है । आपको यह तो जानना ही पड़ेगा कि पढ़ाई कैसे करनी है और उत्तर कैसे लिखना हैं । हालाँकि बाहरी सपोर्ट अनिवार्य तो नहीं होता , फिर भी यह प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से हमारी क्षमता को बढ़ाकर सफल होने में हमारी कुछ मदद तो करता ही है । इस तरह के कुछ बाहरी सपोर्ट हो सकते हैं 1 . परिवार वालों का समर्थन एवं सहयोग । इसके कारण हमारे दिमाग़ से तनाव कम हो जाता है और हम धैर्य के साथ तैयारी कर पाते हैं । आर्थिक मदद तो मिलती ही है । 2 . 3 . यदि आप नौकरी में हैं , तो बॉस का सहयोग । कॉलेज के प्रोफेसर्स एवं परीक्षा में सफल लोगों के अनुभवों का लाभ । प्रत्येक जिले में कलेक्टर और एसपी इसी सेवा से आए हु लोग होते हैं । आप उनसे मदद ले सकते हैं । राज्य की राजधानियों विभागों में पदस्थ होते हैं । आप उनसे मिल सकते हैं । विश्वास रखिए  ि सिविल सेवा परीक्षा से आए हुए अन्य अधिकारी कई अलग - अल अधिकांश अधिकारियों को आपकी मदद करके खुशी मिलती है । मित्रों का सहयोग - विषय पर डिस्कशन करने के लिए भी और हौसल अफज़ाई के लिए भी । यदि आपको लगता है कि इन पैमानों पर आप खरे उतर रहे हैं , और यदि नहीं भी उतर रहे हैं किन्तु बाद में स्वयं को इन पैमानों के अनुकूल ढाल लेंगे , तो आईएएस के इस दंगल में एक बार फिर से आपका स्वागत है ।
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