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प्रेरणा दायक विचार।क्योंकि ठोकरें हमें बेहतर इंसान बनाती हैं ...। Motivational Thoughts In Hindi

प्रेरणा दायक विचार।क्योंकि ठोकरें हमें बेहतर इंसान बनाती हैं ...। Motivational Thoughts In Hindi

क्योंकि ठोकरें हमें बेहतर इंसान बनाती हैं ...

 हम सब चाहते हैं कि हमें जीवन के हर संघर्ष में सफलता हासिल हो । हम जो भी सपना देखें , वह एक झटके में पूरा हो जाए । हमारे पास दुनिया को अपने कदमों में झुका सकने वाली ताकत हो , बेशुमार दौलत और ऊँची सामाजिक हैसियत हो । सच तो यह है कि हमारी भूख इससे भी ज्यादा है । हम चाहते हैं कि हम जीवन के किसी भी युद्ध में पराजित न हो और हमें चुनौती देने वाला हर व्यक्ति हमसे हार जाए।

गौर से देखें तो जीतने की इस भूख के फायदे भी हैं और नुकसान भी , हालाँकि लोगों का ध्यान प्रायः इसके फायदों पर ही जाता है । यही कारण है कि हमारे माँ - बाप और अध्यापक बचपन से ही हमारे भीतर यह भूख भर देना चाहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इसी ' किलर इंस्टिंक्ट ' की हैं । वे बच्चों को बचपन से ही अव्वल स्थान पर पहुँचने और बने रहने का संस्कार देते हैं ।


प्रेरणा दायक विचार।क्योंकि ठोकरें हमें बेहतर इंसान बनाती हैं ...। Motivational Thoughts In Hindi

 बदौलत व्यक्ति सफलता के चरम स्तर को छू पाता है । इसलिये वे बच्चों को सिकंदर , नेपोलियन और पृथ्वीराज चौहान की झूठी सच्ची कहानियाँ सुनाते पर इस भूख को रात - दिन महिमामंडित करने के समानांतर हमें यह भी सोचना चाहिये कि क्या यह भूख सचमुच इतनी शुभ है ? भूलना नहीं चाहिये कि जीतना एक तुलनात्मक स्थिति या ' रेलेटिव पोजीशन ' है । ' कोई जीतेगा ' कहने में ही निहित है कि कोई हारेगा भी । आमतौर पर जब एक व्यक्ति जीतता है तो सौ पचास लोग हारते भी हैं । किसी कक्षा में जब एक बच्चा पहला स्थान हासिल करके गर्वोन्माद में डूबा होता है तो ठीक उसी समय बाकी बच्चे पराजय बोध से तिलमिला रहे होते हैं , भले ही उनकी पीड़ा पर किसी की नज़र न जाए । अतः इस बात पर गंभीरता से सोचा जाना चाहिये कि क्या एक व्यक्ति को आत्ममुग्धता का मौका देने के लिये बाकी 99 को कुंठा में धकेलना उचित है ? भी यह हमारे समाज का भयानक सच है और विद्यार्थी जीवन में तो इसकी कड़वाहट का अहसास सबसे तीखा होता है । इस नाजुक उम्र में यह समझना बेहद जरूरी है कि हार हमेशा बुरी नहीं ' के एक स्वाभाविक हिस्से की तरह लिया जाना चाहिये । सच यह है कि लगातार मिलने वाली पराजय भले ही इंसान को तोड़ देती हो ; पर कभी - कभार लगने वाली ठोकरें इंसान को बेहतर ही बनाती हैं , उसे ठीक से मांज देती हैं । थोड़ी बहुत ठोकरें खाने का पहला फायदा यह है कि इससे व्यक्ति में ' धैर्य ' और ' जुझारूपन ' जैसे चारित्रिक गुणों का विकास होता है । आजकल कई मनोवैज्ञानिक मानने लगे हैं कि व्यक्ति की सफलता में बौद्धिक क्षमता ( इंटेलिजेंस ) और भावनात्मक समझ ( इमोशनल इंटेलिजेंस ) से ज्यादा बड़ी भूमिका ' लगन ’ या ' परजेवरेंस ' ( Perseverance ) की होती है । ' परजेवरेंस ' का अर्थ है- कठिनाइयों से डरे बिना अपने उद्देश्य की साधना में लगातार जुटे रहना । इसके उदाहरण दुनिया में भरे पड़े हैं । याद रखिये कि थॉमस एडिसन लगभग एक हजार विफल प्रयोग करने के बाद बल्ब का आविष्कार कर पाया था । आइंस्टीन को तो मंदबुद्धि बालक बताकर स्कूल से ही निकाल दिया गया था । इन सब की ताकत यही थी कि विफलता के इन क्रूर क्षणों में भी ये टूटे नहीं बल्कि अपनी जिद पर अड़े रहे । आज तो यह कल्पना करने से ही कँपकँपी छूटती है कि हर विफलता के बाद इन महापुरुषों ने अपना आत्मविश्वास कैसे बनाए रखा होगा ? विफल होने का दूसरा फायदा यह है कि व्यक्ति के पैर जमीन पर टिके रहते हैं । उसके मन में यह अहसास बना रहता है कि वह दुनिया का मालिक नहीं है , बल्कि समाज में और भी लोग हैं जिन्हें ईश्वर या प्रकृति ने योग्यता बख्शी है । यह अहसास व्यक्ति को सफलता के चरम स्तर पर भी घमंडी नहीं बनने देता , उसे विनम्र और संवेदनशील बनाए रखता है । हार का तीसरा फायदा यह है कि व्यक्ति दुनिया को ठीक से पहचानने की योग्यता विकसित कर लेता है । वह देख पाता है कि दोस्ती का दावा ठोकने वाले कई लोग संकट की घड़ी में तुरंत किनारा कर लेते हैं जबकि कुछ लोग अप्रिय या अजनबी होने के बाद भी संकट में हाथ थाम लेते हैं । अंग्रेजों को पुरानी कहावत है- " A friend in need is the friend indeed " यानी असली दोस्त वही है जो संकट के दौर में साथ दे । समझदार लोग विफलताओं के दौर में हताश होने की बजाय अपने परिचितों के मन को पढ़ने - समझने में ऊर्जा लगाते हैं । हार का एक और भी फायदा है जो समय के लंबे अंतराल में समझ आता है । जब व्यक्ति किसी क्षेत्र में पूरी ताकत झोंक देने के बावजूद अंतिम रूप से विफल हो जाता है तो एकबारगी उसे हर तरफ अंधेरा महसूस होता है । धीरे - धीरे उसे किसी नए क्षेत्र में कदम रखना पड़ता है । कई बार वह नए क्षेत्र में सफलता का ऐसा परचम लहरा देता है जो पुराने क्षेत्र में संभव ही नहीं था । बाद में वह उसी विफलता को याद करके खुश होता है जो उस समय उसे अंधेरे का अहसास करा रही थी क्योंकि अब समय के लंबे कैनवास पर वह देख पाता है कि इस बुलंदी पर पहुँचने के लिये वह हार कितनी जरूरी थी । कल्पना कीजिये कि अगर फेसबुक ने ब्रायन ऐक्टन को नौकरी देने से मना न किया होता तो आज हमारे पास ' वाट्सएप ' जैसी सुविधा भी न होती । हार के इतने सारे फायदे गिनाने का प्रयोजन न तो उसे महिमामंडित करना है और न ही यह कहना कि हमें हारने की कामना करनी चाहिये । बात सिर्फ इतनी है कि जिंदगी को खेल भावना से खेलते हुए जीने की कोशिश करनी चाहिये । व्यक्ति को अपनी पराजय पूरी गरिमा से स्वीकार करते हुए सफलता की नई परिभाषा या रणनीति गढ़नी चाहिये । आखिर किसी परीक्षा में सफल हो जाना ही तो जिंदगी नहीं है !!


प्रेरणा दायक विचार।क्योंकि ठोकरें हमें बेहतर इंसान बनाती हैं ...। Motivational Thoughts In Hindi

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