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यादें

यह रात कुछ भटकाव वाली है,मैं आज फिर से भटक गया हूँ स्कूल के उस बरामदे में। उन सुरीले स्वरों की मधुर तान में उलझ सा गया हूँ,आज फिर से उस थिरकन ने सम्मोहित कर दिया है मुझे, घुंघुरूओं की रुनझुन ने चारों ओर से घेर लिया है। मैं अटक गया हूँ कहीं...सब मखोल उड़ा रहे हैं, कोई जैसे प्रोत्साहित कर रहा हो...मैं फिर से हिम्मत जुटा लेता हूँ।
उन यादों के शहर में अनगिनत यादें सिर्फ एक शख्स की! हर एक याद जैसे कल की ही बात हो। यादें तो और भी है, लेकिन इस मानस पटल पर अमिट तो सिर्फ उतनी ही है।
जैसे कोई फिर से प्रोत्साहित कर रहा हो...कह रहा है भटक मत जाना है बहुत दूर..

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