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इंसानियत सिसकियाँ भर रही है.... रिश्ते टूट कर चूर चूर

इंसान कहने मात्र को इंसान रह गया है, इंसानियत तो किसी कौने में सिसकियाँ भर रही है, रिश्ते टूट कर चूर चूर हो गये हैं, कितने ही दिलों को शूल से चुभने वाले शब्दों के बाणों ने घायल कर दिया है! वजह सुनना चाहोगे? अगर हिम्मत है आपमें अपने अहंकार को किनारे करने की तो पढियेगा इसे, चलिये कोई बात नी जब तक इसे पढ़ो तब तक ही सही अपने मन में जो औरों के प्रति द्वेष, नफरत, जलन है उन सबको अपने मन से निकाल दीजिये,खुद की नाकामियों को (चाहे वो व्यक्तिगत हो या सामाजिक हो) छुपाने के लिए और दूसरों की नजर में उत्तम बनने की चेष्टा में  आज का इंसान इतना अंधा हो गया  है कि उसे यह भी एहसास नहीं  है कि वो किसके विरुद्ध खड़ा हो गया है, गलतियां किसी की भी हो मगर स्वीकार करने की हिम्मत किसी मे भी नी है। पता नही क्यों किसी को भी दिल मे जरा भी अपने किये पर ग्लानि नहीं होती, एक वक्त था जब लोग कुछ करने की तो दूर की बात है, कुछ बोलते भी थे तो सोच समझ कर बोलते थे कि कहीं किसी के दिल को ठेस न पहुंच जाए। मगर आज के दौर में वो बात कहां हैं, अब तो सिर्फ घात लगाके बैठे है, पल पल बदलते वक्त के साथ इंसान की इंसानियत के पैमाने भी बदल रहे हैं। इंसानियत के पैमाने पर अब केवल वही श्रेष्ठ है जिसने किसी को नीचा दिखाने के लिए अपना पुरजोर प्रयास  किया और उसके स्वाभिमान को धूमिल किया हो। ऐसा करके भी उसे खुद के दिल मे झांकने की फुरसत कहाँ है! जिसको भी देखो सब तन को महकाने में लगे हैं, याद ही नही है मन के मैल को कब धोया था। खुद के रास्तों में से कांटे हटाने की हिम्मत नहीं है मगर दूसरों की साफ राहों में कांटे बिछाने की भरपूर ताकत  है। कुछ रिश्तों में ना जाने कितनी गिरहें लग गई गई है उन्हें सुलझाने का वक़्त नहीं है, मगर किसी के सुलझे रिश्तों को उलझाने के लिए समय ही समय है। आज वक़्त है अपनी कुछ गलतियों को स्वीकार करने का, मगर नहीं "मैं" मैं गलत कैसे हो सकता हूँ? इसी मैं की वजह से ना जाने कितने खूबसूरत रिश्तों का गला घोंट दिया है। दुनियां के सामने तो हम यह सिद्ध कर देंते हैं कि मैं ही सर्व श्रेष्ठ हूँ मैंने कोई गलती नहीं की। मगर क्या अपने आप को जवाब दे पाओगे? कभी बात की है खुद से? कभी सोचा है इन सबसे से ऊपर उठ के? जरा सी फुरसत मिले अगर किसी की राहों में कांटे डालने से, किसी के रिश्ते उलझाने से, द्वेष, ईर्ष्या, जलन से बाहर आने की तो  सोचियेगा और जवाब दीजियेगा खुद को, इंसानियत को। दे पाओगे जवाब अपने आप को? क्या जरा सी इंसानियत भी नही बची? अगर बची है तो उठिये और अपनी गलतियों को स्वीकार कीजिये, अपने मन के मैल को धो डालिये, तन की सफेदी से कुछ नहीं होगा, आज जरा सा साबुन ले आइये ग्लानि का और मन की परतों को धीरे धीरे महका दीजिये, क्या पता किसी कौने में बेसुध पड़ी इंसानियत को होश आया जाए।😭😢😭

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