हर किसी ने दिखाई अपनी व्यस्तताएं, और गिनाई अपनी मजबूरियां
कोई देख ही नहीं पाया, बसे खालीपन को मेरी इन आँखों में.....जो देखती रहती थी किसी अपने की राह पल दो पल के साथ को।
पड़ी ही नहीं नजर किसी की
मेरी खाली हथेलियों पर
जो तरसती रहती थी, हर पल थामने को किसी अपने का हाथ....
पहुंच पाई ही नहीँ किसी के कानों तक
मेरे ठिठक चुके कदमों की आहट
जो चाहते थे चलना कुछ कदम
थामकर किसी अपने का हाथ....
अंततः मिल ही गई वो आंखें
और पढ़ लिया मेरी आँखों का खालीपन...
थाम लिया मेरा हाथ
सुन ली मेरे ठिठके कदमों की आहट
और चलने लगा कदम मिलाकर मैं "खुद ही खुद के साथ"
3 टिप्पणियाँ
😀
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