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अर्थहीन है हर एक लिखा हर्फ़ मेरा

पता है तुम्हें! तुम्हारे बिछोह में ना जाने कितने हर्फ एक सूत्र में पिरोये है मैं जब भी कुछ लिखता था या यूं ही जोड़ लेता था कुछ शब्दों को उभर आती थी तस्वीर तुम्हारी मेरे मानस पटल पर जैसे बैठी हो तुम सामने मेरे पढ़ रही हो मेरा लिखा जैसे ढूंढ रही हो अर्थ अनकहे अलफाजों का और अनायास ही मुस्करा उठती हो उन शब्दों का अर्थ मिल जाने पर मैं निहारता रहता अपलक तुम्हारे अधरों की हंसी को कपोल तक जाते हुए मैं आज भी लिखता हूँ हर कोई पढ़ता है तारीफ करते हैं सब मेरी लेखनी की बस जब तक तुम नहीं समझ लेते अर्थहीन है हर एक लिखा हर्फ़ मेरा।

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