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मरुस्थलीय प्रेम

प्रिय! कभी देखना तुम सुलगते सहरा को प्रेम भरी निगाहों से तुम पाओगे कि घुमड़ आयी है काली बदरिया बरसने को है स्नेह में वह अद्भुत आर्द्रता है जो अपनी नमी से मरुत्वान में भी बरखा कर दे यह वह सब कुछ कर सकता है जो तुम्हारा बल कभी नहीं कर सकता.... कभी नहीं

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