लौटने की एक उम्र होती है,
प्रतीक्षा की एक ललक !
उसके बाद लौटे तो,
उसठ विराने के सिवा क्या पाओगे ?
खंडहरों से स्वागत की कामना किसलिए ?
कोई पथिक बना ले रैन बसेरा,
तो अचरज कैसा ?
लेकिन इस दिल को है
आज भी इंतजार
सिर्फ तुम्हारा
कुछ पथिक आये थे
कुछ पल गुजारे शुकुन से
मगर थे तो
पथिक ही न
मंजिल तो तुम्हारी है
सिर्फ तुम्हारी
कभी गुजरो इस राह से
तो टोह लेना
इस मंजिल को है
आज भी
इंतजार
सिर्फ तुम्हारा
0 टिप्पणियाँ