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लौटने की एक उम्र होती है

लौटने की एक उम्र होती है, प्रतीक्षा की एक ललक ! उसके बाद लौटे तो, उसठ विराने के सिवा क्या पाओगे ? खंडहरों से स्वागत की कामना किसलिए ? कोई पथिक बना ले रैन बसेरा, तो अचरज कैसा ? लेकिन इस दिल को है आज भी इंतजार सिर्फ तुम्हारा कुछ पथिक आये थे कुछ पल गुजारे शुकुन से मगर थे तो पथिक ही न मंजिल तो तुम्हारी है सिर्फ तुम्हारी कभी गुजरो इस राह से तो टोह लेना इस मंजिल को है आज भी इंतजार सिर्फ तुम्हारा

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