सुनो!
बेगानों के मेले में, किसी अपने से लगते हो
नाउम्मीदी आंखों में उम्मीद के सपने जैसे हो,
सुलगते सहरा में बरसता सावन लगते हो,
कोलाहल की दुनिया में मंद मुस्कान के जैसे हो...
देरीना ए ख्याब की ताबीर से लगते हो
किसी अपने से लगते हो, किसी सपने से लगते हो
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