सुनो!
एक काम करते हैं
इस बंजर भूमि में न
प्रेम के कुछ बीज बो देते हैं
ठीक है ना
ईर्ष्या,द्वेष,छल,कपट की जो बाढ़ आई है ना
एक ही उपाय है
प्रेम-ढेर सारा प्रेम
मानवीय संवेदना
जो विलुप्ति की कगार पर है
प्रलय के उस छोर पर सितारों सा चमकता है प्रेम
जो अब भी सक्षम है
जगत के पुनर्जीवन के लिए
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