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स्मरण - शक्ति को कैसे बढ़ायें । याददाश्त शक्ति कैसे बढ़ाएं। How to increase memory in Hindi

स्मरण - शक्ति को कैसे बढ़ायें । याददाश्त शक्ति कैसे बढ़ाएं। How to increase memory in Hindi

स्मरण - शक्ति को कैसे बढ़ायें 


“ मस्तिष्क जन्मजात होता है किन्तु ज्ञान अर्जित किया जाता है....... स्मृति भी एक अर्जित किया गया गुण है ।”
 
मस्तिष्क हमारे शरीर का उसी तरह से एक महत्त्वपूर्ण अंग है , जिस तरह से हृदय , यकृत और फेफड़े आदि । जिस प्रकार शरीर के अन्य अंगों के कुछ गुण और कार्य हैं , उसी प्रकार मस्तिष्क के भी कुछ कार्य हैं और कुछ गुण भी । मस्तिष्क के मुख्य कार्य क्या हैं , यह आप पहले ही जान चुके हैं । इन्हीं कार्यों में से आपने एक कार्य स्मरण दिलाने के रूप में पढ़ा है । वस्तुतः स्मरण दिलाना और उसे स्मृति में रखना मस्तिष्क का कार्य तो है , लेकिन उससे भी कहीं अधिक वह उसका गुण है । गुण इस मायने में कि यह एक ऐसा भाव है , एक ऐसा तत्त्व है , जिसे आपको हासिल करना पड़ता है । यह जन्मजात नहीं होता ।
 आपने मानसिक रूप से कमजोर बच्चे देखे होंगे , जिन्हें हम ' मन्दबुद्धि ' कहते हैं । इन्हें कुछ भी समझाने और सिखाने की कोशिश कीजिए , ये आसानी से नहीं समझते और यदि समझ भी जाते हैं , तो बहुत जल्दी भूल जाते हैं । कुछ ऐसे लोग भी देखने को मिले होंगे , जिनकी याददाश्त आपको बहुत कमजोर लगी होगी ।


 जहाँ तक मन्दबुद्धि बच्चे और बहुत अधिक कमज़ोर याददाश्त वाले लोगों का प्रश्न है , निश्चित रूप से इनके मस्तिष्क के निर्माण और विकास में ही कोई न कोई ऐसी त्रुटि रह जाती है , जिसका खामियाज़ा उन्हें जीवन भर भोगना पड़ता है । इस त्रुटि के कारण उनका मस्तिष्क समन्वय , सामंजस्य और नियंत्रण का काम ठीक तरीके से नहीं कर पाता । इसीलिए आपने देखा होगा कि ऐसे लोगों के हाव - भाव भी आपको थोड़े से विचित्र लगेंगे । चूँकि उनका मस्तिष्क उनके कार्यों का समुचित एवं सन्तुलित तरीके से नियंत्रण नहीं कर पा रहा है , इसलिए उनकी चेष्टाएँ कुछ अटपटी - सी हो जाती हैं । यह सब मस्तिष्क के निर्माण और उसके विकास की कमी के कारण होता है । अधिकांश वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक स्मृति को एक प्रकार का गुण ही मानते हैं , बशर्ते कि किसी में कोई विलक्षण क्षमता न हो । इतिहास ऐसे विलक्षण मस्तिष्क एवं स्मरण शक्ति वाले लोगों का प्रमाण प्रस्तुत करता है । 

प्राचीन ग्रन्थों में राजा भोज के दरबार में रहने वाले एक श्रुतिधर नाम के दरबारी का वर्णन मिलता है । उनकी स्मृति इतनी विलक्षण थी कि वे एक घड़ी यानी कि चौबीस मिनट तक सुने जाने वाले किसी भी प्रसंग के अंश को ज्यों का त्यों सुना सकते थे । स्वामी विवेकानंद की स्मृति तो इतनी अद्भुत थी कि उन्होंने शिकागो पुस्तकालय से एक बड़ा विश्वकोष निकलवाया और उसके अगले ही दिन उन्होंने वह पुस्तक लौटाई , तो उसके पृष्ठों को ज्यों का त्यों दोहराकर लायब्रेरियन को आश्चर्य में डाल दिया । फ्रांस के सम्राट नेपोलियन के बारे में तो कहा जाता है कि उन्हें अपने प्रत्येक सैनिक के नाम और पते याद थे । डॉ . हेलन केलर और ब्रेल लिपि के आविष्कारक लुई ब्रेल की स्मरण शक्ति गज़ब की थी । हेलन केलर ने तो अपनी आत्मकथा में लिखा भी है कि मैं अपने जीवन में किसी वस्तु को नहीं गँवाया । ' भारतीय जैन मुनियों का अद्भुत प्रदर्शन किया है । सहित ऐसे अन्य अनेक नाम हैं , जिन्होंने अपनी स्मरण शक्ति का अदभुत प्रदर्शन किया है।

इस स्मरण शक्ति के चमत्कार क्यों और किस प्रकार से होते हैं , यह तो एक रहस्य है , जिस पर से पर्दा उठाया जाना है , लेकिन हमारे लिए यह जरूरी है कि हम विलक्षण स्मृतियों वाले इन व्यक्तियों को अपवाद ही मानकर चलें , क्योंकि ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम रही है और यह भी तो जरूरी नहीं है कि जिस व्यक्ति की स्मरण शक्ति विलक्षण होगी , वह व्यक्ति महान भी होगा । रूस के एक पत्रकार थे - शेरेस्व्क्सी । उनकी स्मरणशक्ति गज़ब की थी , किन्तु वे एक औसत दर्जे के पत्रकार थे । मैं ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ , जिनमें तारीख याद करने की गज़ब की क्षमता है । उनसे किसी भी घटना , यहाँ तक कि छोटी से छोटी घटना की भी तारीख और वर्ष पूछा जा सकता है और यह भी जरूरी नहीं है कि यह घटना और तारीख उनके अपने जीवन से जुड़ी हुई हो । उनके लिए इतना ही पर्याप्त है कि उन्होंने वह घटना और तारीख सुनी हो । यहाँ तक कि किसी भी घटना का सूक्ष्म से सूक्ष्म ब्यौरा वे इस प्रकार दे सकते हैं , मानो कि वे घटनाएँ अभी अभी उनकी आँखों के सामने घट रही हों और वे उसकी रनिंग कमेन्ट्री सुना रहे हों । बीस साल पहले की घटना को ज्यों - का - त्यों बयान कर देना उन बाएँ हाथ का खेल है , लेकिन क्या आप विश्वास करेंगे कि सरकारी नौकरी करने वाले ये व्यक्ति एक तृतीय श्रेणी कर्मचारी के रूप में सेवानिवृत्त हुए ? मेरे इस प्रसंग के उल्लेख करने का अर्थ केवल यह बताना है कि आपको यदि किसी व्यक्ति की अद्भुत स्मरणशक्ति के बारे में कुछ सुनने को मिलता है , तो आप उससे आतंकित न हों । यह जरूरी नहीं है कि उसकी सफलता भी उतनी ही अद्भुत होगी । अधिकांश मामलों में हमें यह मानकर चलना चाहिए कि मस्तिष्क जन्मजात होता है , किन्तु ज्ञान अर्जित किया जाता है । ठीक इसी प्रकार इस अर्जित ज्ञान को मस्तिष्क में बनाए रखने के लिए साधना करनी पड़ती है । यानी कि - अप्रत्यक्ष रूप से स्मृति भी एक अर्जित किया गया गुण है , न कि जन्मजात गुण । ज्ञान और स्मृति के सही सामंजस्य से ही जीवन में सफलता प्राप्त होती है ।


जहाँ तक इसके जैविक ( बायोलॉजिकल ) स्वरूप का प्रश्न है , यह आपको पहले ही बताया जा चुका है कि हमारा मस्तिष्क खरबों तंत्रिकाओं यह कोशिकाओं से बना हुआ है , जिन्हें न्यूरॉन्स कहते हैं । स्मृति इन्हीं न्यूरॉन्स में सुरक्षित रहती है । दूसरी बात यह कि हमारे मस्तिष्क में सायनेप्स की संख्याएँ जितनी अधिक होंगी , वह उतनी ही अधिक मात्रा में सूचनाएँ ग्रहण कर सकेगा । फलस्वरूप मस्तिष्क एवं स्मरण शक्ति में भी उतनी ही अधिक • वृद्धि होगी । सायनेप्स ही कोशिकाओं को एक - दूसरे से जोड़ने करते हैं । इसका मतलब यह हुआ कि परस्पर बन्धन ही स्मरण शक्ति का मूल आधार है । हम अपने मस्तिष्क की सूचनाओं को एक - दूसरे जितना अधिक और जितने सुदृढ़ रूप में बाँधकर रख सकेंगे , हमारी स्मरण - शक्ति उतनी ही अधिक तीव्र और लम्बे काल वाली होगी । 

आइए , स्मरण शक्ति से जुड़े कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण पहलुओं को जानें -
हमारा मस्तिष्क मुख्यतः छायांकन की तरह नहीं , बल्कि चित्रांकन की तरह काम करता है । यह एक प्रकार से कैमरे की रील है । जिस प्रकार कैमरे की रील पर चित्र अंकित होते हैं , ध्वनि नहीं , ठीक इसी प्रकार हमारे मस्तिष्क में भी चित्र अंकित होते हैं , ध्वनि नहीं । हम जो कुछ भी देखते हैं , सुनते हैं या पढ़ते हैं , उन्हें हमारा मस्तिष्क चित्र - लिपि के रूप में ग्रहण करता है । यदि दिमाग ऐसा नहीं कर पा रहा है , तो उसका कारण यह है कि वह उस सुनी हुई ध्वनि या देखे हुए अक्षरों का चित्र बनाने में असमर्थ है । उदाहरण के लिए आप जैसे ही ' गाय ' की ध्वनि सुनते हैं या किताब में छपा हुआ ' गाय ' पढ़ते हैं , वैसे ही आपके मस्तिष्क में गाय का चित्र उभर आता है और मस्तिष्क इसे अंकित कर लेता है । जबकि आप यदि ' लारेक्स ' शब्द सुनते हैं या पढ़ते हैं , तो उसे समझ नहीं पाते । आप इसलिए नहीं समझ पाते , क्योंकि इस ध्वनि को सुनने या अक्षर को देखने से आपका मस्तिष्क कोई बिम्ब नहीं बना पाया है , जबकि यदि स्पेनिश भाषा का जानकार यह शब्द पढ़ेगा , तो उसे आसानी से समझ में आ जाएगा , क्योंकि उसके मस्तिष्क ने गाय का चित्र बना लिया है ।


परीक्षा में आप बहुत तेजी से उत्तर लिखते जाते हैं । यदि आप यह उत्तर लिखते समय अपने दिमाग की प्रक्रिया का थोड़ी - सी गहराई से निरीक्षण करें , तो पाएँगे कि आपके दिमाग में उस पुस्तक या आपके नोट्स के पन्ने उभर रहे हैं , जिनसे आपने यह तैयारी की थी । यहाँ तक कि जब आपके नोट्स का एक पन्ना पूरा हो जाता है , तो आपका दिमाग आपको बिना बताये ही चुपके से उस पन्ने को पलटकर अगले पन्ने में दी गई । जानकारियाँ देना शुरू कर देता है ।
  क्या ये दोनों उदाहरण इस तथ्य को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं कि हमारा मस्तिष्क चित्रों का स्मरण करता है ? वह बिम्ब ग्रहण करता है । मैं • समझता हूँ कि स्मरण शक्ति के सन्दर्भ में हमारे मस्तिष्क के इस चरित्र को जानना बहुत ही अधिक जरूरी है । यदि मस्तिष्क चित्रों को ग्रहण करता है , तो फिर यह बात बिल्कुल निर्विवाद है कि चित्र जितने स्पष्ट और गहरे होंगे उनकी स्मृति भी उतनी ही दीर्घकालीन होगी । 

आखिर याददाश्त क्या है ? यही न कि कोई बात मस्तिष्क में कितने समय तक बनी रहती है । विस्मृति ठीक इसके उलटा है । विस्मृति का अर्थ है - स्मृति का विलोप हो जाना यानी कि भूल जाना । यदि हम इसे चित्र के सन्दर्भ में कहें , तो हमें कहना होगा कि चित्र का धुँधला पड़ जाना या चित्र का मिट जाना ही विस्मृति है ।

 निराश न हों भूलने से

 विज्ञान इस बात को सिद्ध कर चुका है कि हमारे मस्तिष्क पर एक बार जिस वस्तु का बिम्ब बन जाता है , वह फिर कभी नष्ट नहीं होता । आमतौर पर जिसे हम सब भूलना कहते हैं , वह किसी जानकारी का खत्म हो जाना नहीं होता , बल्कि उस जानकारी का गुम हो जाना होता है । वह जानकारी हमारे दिमाग में तो है , लेकिन फिलहाल हमें मिल नहीं रही है । मिल इसलिए नहीं रही है , क्योंकि हमने रखते समय बहुत ध्यान नहीं दिया था । मिल इसलिए नहीं रही है , क्योंकि एक बार रख देने के बाद हमने दोबारा उसे ढूँढ़ने की कोशिश नहीं की , क्योंकि हमें उसकी जरूरत ही नहीं पड़ी ।

 विस्मृति ठीक उसी तरह है , जिस तरह हम अपनी कोई छोट चीज़ घर में कहीं रखकर उसे भूल जाते हैं । जब जरूरत पड़ती है , तो उसे ढूँढ़ने के लिए मारामारी मच जाती है , लेकिन वह मिल नहीं पाती । है वह चीज़ वहीं , लेकिन मिल नहीं रही है और आपने देखा होगा कि अचानक एक दिन वह मिल भी जाती है । 

भूलने से निराश न हों । यह कोई बीमारी नहीं है । यह कोई अवगुण नहीं है । यह दिमाग की कमजोरी भी नहीं है । यह मुख्यतः हमारी सतर्कता से जुड़ी हुई बात है । जिन कामों को हम सतर्क होकर करते हैं , वे काम लम्बे समय तक याद रहते हैं और जिन कामों को हम यूँ ही कर देते हैं , वे यदि यूँ ही गायब भी हो जाते हैं , तो फिर भला उसका क्या दोष और दोष आपका भी नहीं है । ऐसा इसलिए , क्योंकि ऐसा होता ही नहीं है कि हम सारे ही कामों को पूरी सतर्कता के साथ कर सकें । यही कारण है कि हमारा मस्तिष्क हर दिन की लगभग 95 प्रतिशत सूचनाओं को मिटा देता है ।

 तो फिर सवाल यह है कि इसके लिए दोषी कौन है ? असल में इसके लिए दोषी है - हमारी कार्यप्रणाली । हमसे गलती यह होती है कि पढ़ते समय जिन चीज़ों को हमें प्राथमिकता देनी चाहिए , हम उन्हें प्राथमिकता न देकर फालतू की चीज़ों को प्राथमिकता देने लगते हैं । अगर आप इतिहास पढ़ रहे हैं , तो चूँकि इतिहास के किस्से - कहानियाँ आपको अच्छे लगते हैं , इसलिए आप उसे प्राथमिकता दे देते हैं । कहानियाँ तो याद हो जाती हैं , लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि अकबर किस सन् में शासक बना था । इसलिए आप विश्वास रखिए कि यदि आप पढ़ते समय या किसी की बात को सुनते समय अपनी प्राथमिकताओं को ठीक कर लें , तो भूलने के संकट से मुक्त हो जाएँगे । यह तो ठीक उसी तरह से है , जैसे आप अपनी अल्मारी में उन किताबों को और कपड़ों को सामने लगाते हैं , जिनकी आपको ज्यादा जरूरत पड़ती है । जिनकी शायद ही कभी जरूरत  पड़ेगी , उन्हें आप अल्मारी के सबसे ऊपर के खाने के सबसे पीछे रख देते हैं , जिन्हें निकालने के लिए आपको स्टूल पर चढ़ना है । इसी प्रकार दिमाग को भी कम प्राथमिकता वाली बातों को कि विस्मृति इससे अधिक और कुछ नहीं है । 

● रखने के लिए अलग से मेहनत करनी पड़ती है । विश्वास कीजिए । 
एक बात और । भूलना अभिशाप नहीं है । यह तो वरदान है , वरदान ।  आप खुद सोचकर देखिए कि हमारी जिन्दगी में जितनी भी बातें होती हैं , यदि वे सारी बातें हमें याद रहें , तो क्या हम सब आगरा के प्रसिद्ध पागलखाने में भेजे जाने लायक नहीं हो जाएँगे ? हमारे दिमाग में बहुत - सी अच्छी बातें रहती हैं , तो बहुत - सी बुरी बातें भी । कुछ कडुवे अनुभव होते हैं तो कुछ मीठे भी । यदि ये सारे कड़वे अनुभव हमें याद रहें , तो क्या हमारा दिमाग करेले के पानी जैसा कड़वा नहीं हो जाएगा ? निश्चित है कि ऐसा ही होगा । इस बात पर संदेह मत कीजिए कि याद रखने की अपेक्षा भूलना कहीं अधिक मुश्किल होता है और चाहकर भूलना तो और भी ज्यादा मुश्किल होता है , क्योंकि जब आप किसी बात को भूलना चाहते हैं , तो इसके लिए आप उस बात को पहले याद करते हैं और इस प्रकार भूलने की जगह उसे याद कर बैठते हैं । फलस्वरूप वह लगातार याद होती चली जाती है ।
 प्रख्यात पार्श्व गायक स्वर्गीय मुकेश का गाया एक गीत भी है
 जिन्हें हम भूलना चाहें , वो अक्सर याद आते हैं । 
पड़ता 
हमारे दिमाग में नई चीज़ों के लिए जगह बन सके , उसके लिए जरूरी है कि हम अपने दिमाग से उन कचरों को निकालकर बाहर फेंक दें , जो बेकार में दिमाग की जगह को घेरे हुए हैं । भूलने से यही काम होता है । फालतू की चीजें निकल जाती हैं , लेकिन हमारी मुश्किल यह है कि उसके साथ जरूरी चीजें भी निकल जाती हैं । इसलिए याद रखिए कि भूलने की प्रक्रिया से मुक्त नहीं होना है , बल्कि आवश्यक बातों को भूलने की आदत से मुक्त होना है और ऐसा हम कर सकते हैं-
 👉पढ़ते समय अपनी प्राथमिकताओं को निर्धारित करके , 
👉दिमाग को फालतू की बातों से बचाकर , 
👉पढ़ी हुई बातों को बार - बार दोहराकर , तथा
👉पढ़ी हुई बातों को लिखकर या किसी को सुनाकर - समझाकर ।

 • ऐसा करने से उस बात के बारे में हमारे दिमाग में बने हुए बिम्बों पर पड़ी हुई धूल ठीक उसी तरह साफ हो जाती है , जिस तरह पालिश किए हुए जूते पर पड़ी हल्की - हल्की धूल । आप जूते पर हल्का - सा ब्रश मारते हैं , जूता फिर से झकाझक हो जाता है । हमारे दिमाग के साथ भी बिल्कुल यही होता है । 

क्या है स्मरण शक्ति ? 

न हमारा मस्तिष्क कम्प्यूटर की फ्लॉपी की तरह है । फ्लॉपी को आप देख सकते हैं , लेकिन स्मरण शक्ति को आप ठीक उसी तरह नहीं देख सकते , जिस प्रकार फ्लॉपी में अंकित अक्षरों को नहीं देखा जा सकता । फ्लॉपी में जो अक्षर अंकित हैं , वही उसका ज्ञान है । स्वाभाविक है कि हमने जो कुछ पढ़ा है , वही हमारे मस्तिष्क में है , लेकिन याद रखिए कि हमारा मस्तिष्क पूरी तरह फ्लॉपी भी नहीं है । फ्लॉपी में इतनी क्षमता नहीं है कि वह अपनी तरफ से एक भी चिह्न दिखा सके , लेकिन हमारे दिमाग में यह अद्भुत क्षमता है कि वह पढ़े हुए का उपयोग करके न जाने कितनी नई - नई बातें लोगों के सामने रख सकता है । तभी तो इसे विलक्षण कहा गया है । 
स्मरण शक्ति का अर्थ है कि हमारा मस्तिष्क पढ़ी हुई बातों को कितने लम्बे समय तक याद रख सकता है और जरूरत पड़ने पर हमें कितनी जल्दी उसे दे सकता है । ये दोनों ही बातें स्मरण शक्ति से जुड़ी हुई हैं । यदि आपको पढ़ी हुई बातें परीक्षा हॉल में याद नहीं आईं , तो फिर बाद में याद आना किस काम का । इसलिए स्मरण शक्ति के साथ दोनों ही बातें जुड़ी हुईं हैं- ( 1 ) पढ़ा हुआ कितने लम्बे समय तक याद रहता है और ( 2 ) कितनी जल्दी याद आ जाता है । तो आइए , जानिए स्मरण शक्ति की इस दुनिया के बारे में ऐसी जरूरी बातें , जो आपके लिए बहुत ही काम की होंगी ।
 ☑️ अमेरिका के न्यूयार्क यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिसीन के वैज्ञानिक एन्टोनिया कनविट ने अपने शोध में यह पाया है कि ' यदि व्यक्ति नियमित कसरत करे , तो बढ़ती हुई उम्र के साथ उसकी याददाश्त भी कमजोर होने की बजाय बढ़ती जाती है । ' इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि खिलाड़ियों में एल्जाइमर और पार्किन्सन रोग की शिकायत बहुत कम मिलती है । इसका मतलब यह हुआ कि देह की चुस्ती और तन्दरुस्ती का सीधा असर हमारे दिमाग पर होता है । कनविट का मानना है कि हमारा मस्तिष्क हमारी मृत्यु तक समान रूप से काम करता है । उन्होंने अपने हाल ही के शोध में पाया कि जो लोग शारीरिक रूप से अधिक सुडौल और गठिले थे , उनके मस्तिष्क का ग्रे मैटर अधिक सुदृढ़ रूप में मौजूद था ।
 इस शोध का एक रोचक पहलू यह था कि जिन व्यक्तियों का वजन शारीरिक मापदण्ड के अनुसार अपेक्षाकृत कम था , उनका ग्रे मैटर और भी अधिक सक्षम था । इस आधार पर उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि यदि बढ़ी हुई उम्र में अपना वजन नियंत्रित रखा जाए , तो इससे स्मरण शक्ति बढ़ती है । 
शायद अब आप समझ गये होंगे कि क्यों आप अपनी कक्षा के थुलथुल मोटे लड़कों को अक्सर भोंदू कहकर चिढ़ाते हैं । साथ ही आपको अब अपने इस विचार को भी बदल देना चाहिए कि ' बूढ़े लोग सठिया जाते हैं । ' यह गलत सिद्ध हो गया है और रक्त संचार की खोज करने वाले वैज्ञानिक विलियम हार्वे का मस्तिष्क तो उनके बुढ़ापे तक जितना अधिक तेज रहा , वह आपकी इस कहावत को डेढ़ सौ साल पहले ही झुठला चुका है । 

☑️ वैज्ञानिक एन्टोनी कनविट ने एक और शोध किया । उनके अनुसार यदि हमारे शरीर में ग्लूकोज़ की मात्रा नियंत्रित हो जाए , तो इससे भी हमारी स्मरण शक्ति प्रभावित होती है । यहाँ तक कि इससे हमारे मस्तिष्क का महत्त्वपूर्ण भाग हिप्पोकैम्पस भी आकार में छोटा पड़ जाता है । इससे पहले आपने पढ़ा है कि हिप्पोकैम्पस हमारे मस्तिष्क का वह भाग होता है , जिसका स्मरण शक्ति से सीधा सरोकार होता है । इसलिए खाने में ग्लूकोज़ की मात्रा नियंत्रित रूप में ही ली जानी चाहिए ।
☑️ इसी से जुड़ा हुआ एक शोध जॉन हॉप्किन्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक गार्डन ने किया । उन्होंने पाया कि आपराधिक गतिविधियों में लगे अधिकांश लोगों की यादाश्त कमज़ोर होती है । ऐसा इसलिए होता है , क्योंकि 

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