सुनो! कुछ अनकहा सा है.... वो चाँद को कह दिया है... कभी फुरसत से सुन लेना......ध्वनि की तो एक सीमा है... वो जो अनकहा सा है ना वो असीमित है.... असंख्य योजन की दूरी पर जब हम तुम मिलेंगे, जहां मैं, मैं नहीं रहूंगा, तुम, तुम नहीं रहोगे... मुझे उस तुम में विलीन होना है... असीमित प्रेम जिसे किसी मापक यंत्र से मापा नहीं जा सकता को धारण किये इंतजार करूँगा.... असंख्य सितारों के उस पार उन नक्षत्रों से निकलने वाली अनन्त धवल रश्मियों के उजाले में.... मिलोगे न तुम?
1 टिप्पणियाँ
No word's.............
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