निजीकरण पर।
खुद अपने कत्ल का जश्न मना रहे हैं
कैसे लोग हैं क़तील कि हाँ मे हाँ मिला रहे हैं।
लाश तक देते नही प्राइवेट अस्पताल वाले
सुना,कुछ लोग निजीकरण को अच्छा बता रहे हैं।
एक एक साधन बिक रहे हमे लगता है कुछ नहीं
समझ लो कि गेहू मे घुन लगा रहे है।
गेल, बीएसएनएल,बीपीसीएल, भेल बिक गई
सुना है अब रेल का नम्बर लगा रहे हैं।
स्कूल,कॉलेज,अस्पताल के बिलों से डर लगता था
अब बिजली के बिल भी झटका लगा रहे हैं।
देश की बुनियादें बिक रही है मुसलसल
साहिबे मसनद इसको विकास बता रहे हैं।
ईस्ट इंडिया कंपनी थी अब ये बहु-कंपनियां
हम आजाद हो रहे कि गुलामी की ओर जा रहे हैं।
वक़्त है अब भी बचाले हम अपने देश को
ये धन्नासेठों के सेवक मुल्क को बेचकर खा रहे हैं।
2 टिप्पणियाँ
भाई क्या खूब लिखा है।।।
जवाब देंहटाएंमुझे भी मेरे वो दिन याद दिला दिए जब मैं भी लिखा करता था।।।
आपके फोन नंबर दे सको तो, 9928979151 पर WhatsApp कर देना
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